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[हिन्दी वैन साहित्यम 4० विशनसिंह छानेसं०१७७३ में निशिमोजनकवारचीथी।
म. महेन्द्रकीर्ति की की 'नीराजना' नामक स्थमा पंचायती मन्दिर दिल्ली में है।
महिमोदय उपाध्याय ने 'पंचाङ्गनिर्माणविधि' सं० १७३३ में रची थी।
कवि सुदामा के ने 'बारहखड़ी' सं० १७६० में बनाई थी।
कवि गंगदास * (पर्वतसुत) का 'महापुराणरास' पंचायती मन्दिर दिल्ली में है।
१० वेगराज ने होलीकथा' सं० १७६५ में रची थी। 'मिश्रबन्धुविनोद' में निमलिखित कवियों का उल्लेख है। हरखचन्द साधु-श्रीपालचरित्र ( १७४०)। जिमरंग सूरि-सौभाग्यपंचमी ( १७४१)
धर्ममन्दिर गणि-प्रबन्धचिन्तामणि, चोपीमुनिचरित्र ( १७४१-१७५०)।
ईसविजय जती-कल्पसूत्रटीका (१७८०)। मानविजय जती-मलयचरित्र (१७८१)। लाभवन-उपपदी ( १७११)
उनीसवीं शताग्दि रि० जैनसंघ के लिए विशेष महत्वपूर्ण है। इस शताब्दि में पण्डितप्रवर टोडरमब्जी और कवियर न्दावन जी हुए थे, जिन्होंने संघ और साहित्य दोनों में ही भलेखनीय सुधार किये थे। जैन समाज स्थितिपालक बनकर विवेक को खो बैठा था-भट्टारकों के अखण्ड राज्य को वह चुपचाप बाँख मेडे . . rat.,,... ।
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