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________________ १८० [ हिन्दी चैन साहित्य का 1 लीने लोक विचार, शकुनार्णव शुभ ग्रन्थ तैं सब जन की हितकार, संस्कृत तैं भाषा रची ॥११॥ संवत सत्रह से बरस, बीते वासठि जानि । मासु सुदि तिथ पञ्चमी, शशिसुत वार बधानि ॥१२॥ श्री पानीपथ नगर मझारि, जिनधर्मी श्रावक सुषकार । x x x x नंदलाल नंदन सुषकार, श्री गोवर्द्धनदास उदार ॥ यह छोटा-सा सर्वोपयोगी प्रन्थ है । किसनसिंहजी सांगानेर के रहने वाले खण्डेलवाल श्रावक थे । इनका गोत्र पाटणी और पद 'सही' था । कल्याण सिंघई के दो बेटे - (१) सुखदेव और ( २ ) आनन्द सिंह थे। सुखदेव के थान, मान और किसन सिंह नाम के तीन बेटे हुए। इन्हीं किसान सिंहजी ने सं० १७८४ में 'क्रियाकोष' नामक छन्दोबद्ध ग्रन्थ बनाया । यद्यपि रचना स्वतन्त्र है, परन्तु कविता साधारण है। कुछ समय पहले जैन घरों में इसका बहुत प्रचार था । 'भद्रबाहु चरित्र' ( १७८५ ) और 'रात्रिभोजनकथा' भी आपकी रचनाएँ हैं। रूपचन्दजी पांडे रूपचन्दजी से भिन्न हैं । इनकी रची हुई बनारसीदास कृत 'नाटकसमयसार' की टीका प्रेमीजी ने एक सज्जन के पास देखी थी। वह बड़ी सुन्दर और विशद टीका संवत् १७९८ की बनी हुई है। दौलतरामजी बसवा के रहने वाले थे, परन्तु जयपुर में जा बसे थे। उनके पिता का नाम आनन्दराम था । वह जाति के काशलीवाल गोत्री खण्डेलवाल थे और राज्य के किसी बड़े पद पर नियुक्त थे। उन्होंने 'हरिवंशपुराण' की प्रशस्ति में लिखा है हिं० जे० सा० इ० पृ० ६८-७१
SR No.010194
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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