SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 196
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संदित इतिहास गृहदुःख का क्या खूबा चित्रण है। तीन अन्य सवैयों में भी गृहदुःख को कवि ने खूब ही जताया है। कवि का यह उपदेशी पद्य क्या आधुनिक कविता की समता नहीं करता? जरा गौर कीजिये "ज़िन्दगी सहल 4 नाहक धरम खोवै, जाहिर जहान दीखै स्वाब का तमासा है। कबीले के खातिर तू काम बद करता है, अपना मुलक छोरि हाथ लिये कांसा है ॥ कौड़ी कौड़ीजोरिजोरि लाख कोरि जोरता है, काल की कुमुक भाएँ चलना न मासा है। साइत न फरामोश हूजिये गुसई या को, यही तो सुनन .खूब येही काम खासा है ॥४॥" 'धर्मविलास' की रचना करके अपना निरीहपन कवि ने किस सुन्दरता से दर्शाया है, यह देखिये "अच्छर सेती तुक भई, तुक सौं हुए छंद । छंदन सौं आगम भयो, आगम अरथ सुछंद ॥ आगम अरथ सुछंद, हमौर्ने यह महिं कीना। गंगा का जल लेय, अरघ गंगा की दीना ॥ सबद अनादि अनंत, ग्यान कारन बिन मच्छर । मैं सब सेती मित्र, ग्पानमय चेतन अच्छर ॥५॥" प्रन्थ प्रशस्ति में कवि ने उस समय की कई ऐतिहासिक बातोंका उल्लेख किया है । आगरा के विषय में उन्हों ने लिखा है "धै कोट उधैं बाग जमना बहै है बीच, पच्छम सौं पूरब की असीम प्रवाह सौं। १२
SR No.010194
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy