________________
२७४
[हिन्दी बैन साहित्य का दूसरा ग्रन्थ 'जैनशतक' नीति की सुन्दर रचना है। इसमें १०७ कवित्त सवैया, दोहा और छप्पय हैं। प्रत्येक पद्य अपने अपने विषय को कहने वाला है। इसे एक प्रकार का 'सुभाषित संग्रह' कहना चाहिए। इसका प्रचार भी बहुत है। कुछ उदाहरण देखिये
"जोलौं देह तेरी काह रोग मो न घेरो जोली,,
___जरा माहिं नेरी जासी पराधीन परिहै । जौली, जम-नामा वैरी देय न दयामा जौलौं,
मान कान रामा बुद्धि जाइ ना विगरिहै । तौली मित्र मेरे निज कारज सँवार लेरे,
पौरुप थकेंगे फेर पीछे कहा करिहै । अहो आग आयें जब सौंपरी जरन लागा,
कुआ के खुदायें तब कौन काज सरिहै ॥" संसार जीवन को छलना भी कवि-वाणी में समझिये"चाहत है धन होय किसी विध, तौ सब काज सरे जियरा जी । गेह चिनाय करूं गहना कछ, ब्याहि सुतासुत बाँटिये भाजी ॥ चिन्तत यो दिन जाहिं चले, जम आनि अचानक देत दगा जी। खेलत खेल खिलारि गये, 'रहि जाइ रुपी शतरंज की बाजी ॥' शिकारी के प्रति मूक पशू की फरियाद भी कवि के मुख से सुनिये:"कानन में बसै ऐसौ आन न गरीब जीव,
प्रानन सौं प्यारौ प्रान पूंजी जिस यह है । कायर सुभाव धरै काहूँ सौं न द्रोह करै,
सबही सौं रै दांत लिय तृन, रहे है।