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संक्षित इतिहास]
'जैनी' था । हेमराजजी ने उस कन्या को बहुत ही बुद्धिमती और व्युत्पन्न बनाई थी। बुलाकीदासजी का जन्म इन्हीं के गर्भ से हुआ. था। उन्होंने स्वयं अपनी माता की प्रशंसा में लिखा है कि
"हेमराज पंडित बसै, तिसी आगरे ठाह । गरग गोत गुन आगरौ, सब पूजें जिस पाइ॥ उपगीताकै देहज़ा, 'जैनी' नाम विख्याति । सीलरूप गुन आगरी, प्रीति नीति की पाँति ।। दीनी विद्या जनक नैं, कीनी अति व्युत्पन्न ।
पंडित जाएँ सीखलें, धरनीतल में धन ॥ सुगुनकी खानि कीधौं सुकृत की वानि शुभ,
कीरतिकी दानि अपकीरति-कृपानि है। स्वारथ विधानि परस्वारथकी गजधानि,
रमाहू की रानि कीधी जैनी जिनवानि है॥ धरम धरनि भव भरम हरनि कीधौं,
असरन सरनि कीधौं जननी-जहानि है। हेमसौ. ......... 'पन सीलसागर.......... भनि,
दुरित दर्शन सुरसरिता समानि है ।"
अठारहवीं शताब्दि में जैनी-जैसी सुशिक्षित महिलारन का होना बड़े गौरव की बात हैं । बुलाकीदासजी अपनी माता के साथ उपरान्त दिल्ली में आ रहे थे। वहाँ उन्होंने 'पाण्डवपुराण' ( भारत भाषा ) की रचना अपनी माता के आग्रह से की थी और उस के अन्त में उन्होंने अपनी माता के प्रति खूब भक्ति प्रकट की थी। प्रेमीजी ने लिखा है कि 'रचना मध्यम श्रेणी की है, पर कहीं कहीं बहुत अच्छी है। कवि में प्रतिभा है, परंतु यह