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संक्षिप्त इतिहास] जोधपुर के अधिकार में आया। फिर प्रत्येक गाँव का थोड़ा-थोड़ा हाल दिया है कि वह कैसा है, फसल कौन-कौन धान्यों की होती है, खेती किस किस जाति के लोग करते हैं, जागीरदार कौन हैं, गाँव कितनी जमा का है, पाँच वर्षों में कितना रुपया बढ़ा है, तालाब नाले और नालियाँ कितनी हैं, उनके इर्द-गिर्द किस प्रकार के वृक्ष हैं । इत्यादि । यह भाग कोई चारसौ पाँचसौ पत्रों का है। इसमें जोधपुर के राजाओं का इतिहास रावसियाजी से महाराजा बड़े जसवन्तसिंहजी के समय तक का है। दूसरे भाग में अनेक राजपूत राजाओं के इतिहास हैं। मूता नेणसा इस ग्रन्थ को लिखकर जैन समाज के विद्वानों का एक कलंक धो गये हैं कि ये देश के सार्वजनिक कार्यों से उपेक्षा रखते हैं।"
देव ब्रह्मचारी (केसरीसिंह?) कृत 'श्री सम्मेदशिखिरविलास' नामक रचना हमारे संग्रह में है; जिसमें उन्होंने अपना परिचय निम्न प्रकार दिया है
"श्री लोहाचारज मुनि धर्म विनीत हैं ; तिन कृत धत्ताबंध सुग्रंथ पुनीत है। ता अनुसार कियो सम्मेद विलास है; देव ब्रह्मचारी जिनवर को दास है॥ केसरीसिंह जान, रहे लसकरी देह है। पंडित सब गुण जान, याको अर्थ बताइयौ ॥"
ब्र देवजीकृत 'परमात्म-प्रकाश' की भाषाटीका भी जस. वन्तनगर (इटावा) के दि० जैन-मंदिर में सं० १७३४ की लिपिबद्ध मौजूद है।