SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 180
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संक्षिप्त इतिहास] इस ग्रन्थ की एक प्रति सं० १८४४ की लिपि की हुई अलीगंज के श्री दि० जैन शान्तिनाथ मंदिर के शास्त्रभंडार में है। ___ 'हरिवंशपुराण' के अतिरिक्त उनके रचे हुए 'पद्मपुराण' ( १७८३ ), 'उत्तर पुराण' ( १७९९), 'धन्यकुमारचरित्र' 'जम्बू. चरित्र' आदि कई ग्रंथ उपलब्ध हैं। 'यशोधरचरित्र' भी इन्हीं कवि खुशालचंदजी का बनाया हुआ है। ____ जगजीवन और हीरानन्द-बादशाह जहाँगीर के शासनसमय में आगरे में संघई अभयराज अग्रवाल एक सुप्रसिद्ध धनी थे । उनकी पत्नियों में एक 'मोहनदे' थीं। जगजीवनजी उन्हीं की कोख से जन्मे थे। समय पाकर वह भी अपने पिता की भाँति सुप्रसिद्ध हुए । 'पंचास्तिकाय टीका' में लिखा है कि वह जाफरखाँ नामक किसी उमराव के मंत्री हो गये थे "ताको पूत भयो जगनामी, जगजीवन जिनमारगनामी। जाफरखाँ के काज संभारे, भया दिवान उजागर सारे ॥५॥" जगजीवन स्वयं कवि और विद्वान् थे, और वह अन्य विद्वानों को भी साहित्यरचना के लिये उत्साहित करते थे। आपने 'बनारसीविलास' का संग्रह किया था और 'समयसार नाटक' की एक टीका लिखी थी। उनके समय में भगवतीदास, धनमल, मुरारि, हीरानन्द आदि अनेक विद्वान् थे। हीरानन्दजी शाहजहानाबाद में रहते थे, जो आगरे का ही एक भाग था। जगजीवन जी की प्रेरणा से उन्होंने 'पंचास्तिकायसार' का पद्यानुवाद केवल दो महीने में रच दिया था। यह एक तात्त्विक ग्रन्थ है और "जैनमित्र" कार्यालय से प्रकाशित हो चुका है । कविता साधारणतः अच्छी है। उदाहरण देखिये
SR No.010194
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy