SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 170
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संक्षिप्त इतिहास] इस भाषा को हिन्दी कहें तो बेजा क्या है ? 'भैया' जी की अन्य कवितायें भी सरस सुन्दर हैं। पाठक 'ब्रह्मविलास' पढ़ें और आनन्द लें। ___ आनन्दघन जी श्वेताम्बर सम्प्रदाय में एक प्रसिद्ध महात्मा हो गये हैं। वह उपाध्याय यशोविजयजी के समकालीन थे, इससे अधिक उनके विषय में कुछ भी ज्ञात नहीं होता। हिन्दी में उनकी 'आनंदघनबहत्तरी' नामक कविता उपलब्ध है, जो 'रायचन्द्र काव्यमाला' में छप चुकी है। उससे स्पष्ट है कि आनंदघनजी एक पहुँचे हुए महात्मा और आध्यात्मिक कवि थे । उनकी काव्यरचना कबीर और सुन्दरदास के ढंग की है और मर्मस्पर्शिनी है। उसमें उन्होंने समतारस को खूब छलकाया है "जग आशा जंजीर की, गति उलटी कछु और । जकन्यौ धावत जगत मैं, रहै पुटौ इक ठौर ॥ आतम अनुभव फूलकी, कोऊ नवेली रीत । नाक न पकरै वासना, कान गहैं न प्रतीत ॥" 'गग सारंग' में एक अध्यात्म पद गीत भी पढ़िये"मेरे घट ज्ञान भाम भयौ भोर, चेतन चकवा चेतन चकी, भागी विरह को सोर ॥१॥ फैली चहुँ दिशि चतुर भाव रुचि, मिव्यौ भरम-तम-जोर । आपकी चोरी आप ही जानत, और कहत न चोर ॥२॥ अमल कमल विकसित भये भूतल, मंद विषय शशि कोर । 'आनंद धन' इक वल्लभ लागत, और न लाख किरोर ॥३॥" * हि• जे. सा. इ०, पृ. ६१-६३ ।
SR No.010194
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy