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________________ संक्षिप्त इतिहास] १४४ "कोउ तो करें किलोल भामिनी सों रोमि रीक्षि, वाही सों सनेह करै खाम रंग अंग में। कोउ तो लहै अनन्द लक्ष कोटि जोरि जोरि, लक्ष लक्ष मान करै लच्छि की तरंग में ॥ कोउ महाशूरवीर कोटिक गुमान करै, मो समान दूसरो न देखो कोऊ जंग में। कहैं कहा "भैया" कछु कहिबे की बात नाहिं, सब जग देखियतु राग रस रंग में ॥" संसार में मतवाद का पक्षपात कितनी भयङ्करता फैला रहा है कविवर उसका निरसन करके निष्पक्ष निर्मद दृष्टि का किस सफलता के साथ चित्रण करते हैं "एक मतवाले कहें अन्य मतवारे सब, मेरे मतवारे पर वारे मत सारे हैं। एक पंच-तत्त्व-वारे एक एक तत्व वारे, एक भ्रम मत वारे एक एक न्यारे हैं। जैसे मतवारे बक तैसे मतवारे कैं, तासौं मतवारे तक बिना मत वारे हैं। सान्ति रस वारे कहैं मत को निवारे रहैं, तेई प्रान प्यारे रहें और सब वारे हैं।" 'चेतन कर्म चरित्र' में वीर-रस की शक्ति-धारा कविवर ने बहाई है-उसमें वहाँ ही गोते लगाइये। केवल एक छन्द यहाँ पढ़िये "वनहिं रण सूरे, दलबल पूरे, चेतन गुण गावंत । सूरा तन जग्गो, कोऊ न भग्गो, अरि दल पै धावंत ॥"
SR No.010194
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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