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सहित इतिहास] भगवतीदास यही हमारे कविवर थे। इन्होंने कविता में अपना उल्लेख 'भैया'-'भविक' और 'दासकिशोर' उपनामों से किया है। "ब्रह्मविलास' नाम के ग्रन्थ में उनकी तमाम रचनाओं का संग्रह "प्रकाशित किया जा चुका है, जिनकी संख्या ६७ है। उनकी कोई. कोई रचना तो एक स्वतन्त्र ग्रन्थ के समान है। ___ कविवर भगवतीदासजी भी बनारसीदासजी के समान एक प्रतिभाशाली आध्यात्मिक कवि थे। काव्य की सब ही रीतियों
और शब्दालंकार अर्थालङ्कार आदि से परिचित थे। श्रीमूलचंदजी 'वत्सल' ने आपकी कविता के विषय में लिखा है कि "आपकी कविता अलंकार और प्रसाद गुण से पूर्ण है। जनता की रुचि और सरलता का आपने काव्य में पूर्ण ध्यान रक्खा है। भाषा प्रौढ़ और शब्द-कोष से भरी हुई है। उर्दू और गुजराती के शब्दों का आपने कहीं-कहीं बहुत ही सुन्दर प्रयोग किया है। सरलता भापकी कविता का जीवन है और थोड़े शब्दों में अर्थ का भण्डार भर देन। यह आपके काव्य की खूबी है। सरसता और सुन्दरता के साथ आत्मज्ञान का आपने इतना मनोहर सम्बन्ध जोड़ा है कि वह मानवों के हृदयों को अपनी ओर आकर्षित किए बिना नहीं रहता।"
(प्राचीन हिन्दी जैन कवि, पृ० १३७) कविवर हिन्दी और संस्कृत के प्रकाण्ड पण्डित होने के साथ ही फारसी, गुजराती, मारवाड़ी, बंगला आदि भाषाओं पर भी अच्छा अधिकार रखते थे। कुछ कविताएँ तो आपने निरी गुजराती और फारसी भाषा में रची हैं। कविता से उन्हें हार्दिक प्रेम था। वह उसमें तल्लीन हो जाते थे। कुछ उदाहरण देखिये, अनुप्रास और यमक की झंकार सुनिये