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संक्षिप्त इतिहास] गये थे, इसका पता भी इस पुस्तक से लगता है। स्मरण रखना चाहिये कि काले अक्षरों में उपे हुए शब्द प्रयमपूर्वक नहीं लाये गये हैं। जैसे____फारकती, दिलासा, कारकुन, मुश्किल, दरदबन्द, दरवेश, रही. शोर, तहकीक, रफीक, इजार, फरजन्द, पेशकशी, गश्त, मशक्कत, फारिग, सिताब, नफर, अहमक, गुनाह, खता, खुशहाल, नखासा, कौल, हेच, पैजार। (अर्धक. भू. पृ. १०-११) ___ कविवर बनारसीदासजी के 'अर्द्धकथानक' में जिस खड़ी बोली का आभास मिलता है, वही उन्नीसवीं शताब्दि कीरचनाओं में अधिक विकसित हो गई और बीसवीं शताब्दि में उससे हिन्दीमाहित्य में एक नया युग ही उपस्थित हो गया। परिवर्तनकाल में हुए कविवर वृन्दावनजी, कवि झुमकलालजी प्रभृति कवियों की माहित्यिक भाषा हमारे इस कथन को पुष्ट करती है। कविवर वृन्दावनजी के निम्नलिखित छन्दों को कौन बड़ी बोली के छन्द नहीं बतायेगा
"जैनी वानी अमल भचल है, दोष की नाशनी है।
ही मुझको परम धर्म दे, तस्व की भापी है।"
"भामागम पदार्थों के स्वामी सर्वज्ञ आप हो । सुरेन्द्रकुन्द सेवें है, आपको इस लोक में ॥"
"प्रमदा प्रवीन प्रतलीन पावनी; दिन शील पालि कुरीति राखिनी । जब मन सोधि मुभिवामदागिनी; वह धन्य नारि मृदुर्ममापिनी॥"