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संक्षिप्त इतिहास]
२३५ कहत मुनि कल्याणकीरति करहु जिणि अवसेर । सुख दुख टार्यो टरत नाहीं अटल ज्यो गिरि मेर ॥८॥
ऐ मनमोहन." . ऋपिरायकृत 'सुदर्शनचरित्र' (श्वे०) पंचायती मंदिर दिल्ली में है।
पनक्रियारास अज्ञातकविकृत (सं० १६८४ ) भी उपर्युक्त मंदिर में है।
इकोसठाणा नामक प्राचीन हिन्दी की रचना सं० १६८३ की लिपिबद्ध भी उपर्युक्त मन्दिर में है। *
सोमकीर्तिजी ने सं० १६०० में 'यशोधररास' रचा था, जिसकी एक प्रति श्री पंचायती मंदिर दिल्ली में विराजमान है।
पं० पृथ्वीपाल अग्रवाल पानीपत के निवासी थे। उन्होंने मं० १६९२ में 'श्रुतपंचमीरास' की रचना की थी, जो उपर्युक्त मंदिरजी में है।
पं. वीरदासजी भ० हर्षकीर्ति के शिष्य थे । उन्होंने सं० १६९६ में 'सीखपचीसी' बनाई थी। इसकी एक प्रति उपर्युक्त मंदिर में है। ___ गद्य-इस काल में गद्य-साहित्य का सिरजन भी होने लगा था, यद्यपि साहित्य-प्रगति का मुख्य माध्यम पर ही था। इस काल की गद्य में लिखी हुई केवल एक ही बड़ी कृति हमारे ज्ञान में आई है। वह है ७२ पत्रों में लिखा हुआ श्री शाहमहाराज पुत्र रायरछकृत 'प्रद्युम्नचरित' नामक ग्रन्थ । इसकी एक प्राचीन प्रति सं० १६९८ की लिखी हुई श्री जैन मन्दिर सेठ का फँचा
* अनेकान्त, वर्ष ४, पृ. ५६१-५६६