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[हिन्दी बैन साहित्य का 'ठासागर' नामक ग्रंथ रचा था, जिसमें हरिवंश की उत्पत्ति
और यादवों का वर्णन है। भाषा में गुजरातीपन है। नमूना इस प्रकार है
"श्री जिन आदि जिनेश्वरू, आदि नणी करतार । युगलाधर्म निवारणो, बरतावण विवहार ॥१॥ मांति शकल मुरदायकू, सांनि करण संसार । आरति मुम्ब दुख आपदा, मार निवारण हार ॥२॥
हरीवंम गायो सुजम पायो, ग्यान वृद्ध प्रकासनो। पाप पाठो गयो नाठो, पुन्य आयो आपनो ॥ कण पुत्र कला कमला, पढ़त मुणत मुहांमणी ।
पूज्य श्री गुण सूर जप, संघ रंग बधावणी ॥" मुनि कल्याणकीर्ति की एक रचना सं० १६३९ के लिपिबद्ध गुटका में सुरक्षित है, जिसमें शृङ्गार रस की पुट वैराग्य के साथ खूब फब रही है
"आमाद आगम पीय समागम मण्यो है मम्यि आज । मोहि बढत अग अनंग रंग तरंग चंग समाज ॥ दम दिमा बादल. सजल. सारे ऊनये जलसाज । मुदित दादर मोर कोकिल करत मेघ अवाज ॥ प. मनमोहन, कयण मयाण पकरत अवधिचय ।
अजहु न आए जी ॥॥ अन्तिम पग भी पदियेते कई जदुराज भावंत कुसल माँ एकबेर ।
ती सखी सब मिल धेर राखें रचे कोई एक फेरि ।