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________________ १३२ [हिन्दी मैन साहित्य का हीरानन्द मुकीम ओसवाल जैन और सुप्रसिद्ध जगतसेठ के वंशज थे। वि० सं० १६६१ में उन्होंने 'सम्मेदशिखरजी' की यात्रा के लिए संघ निकाला था। वह शाहजादा सलीम के कृपापात्र और खास जौहरी थे। सलीम के बादशाह होने पर उन्होंने वि० सं० १६६७ में उनको अपने घर आमंत्रित किया था और नजराना दिया था । इसका वर्णन एक अज्ञात कवि ने आलंकारिक भाषा में इस प्रकार किया है"चुनि चुनि चोखी चुनी, परम पुराने पना, कुन्दनकों देने करि लाए धन ताव के। लाल लाल लाल लागे कुतब बदस्वशां, विविध वरन बने बहुत बनाव के । रूप के अनूप भाछे अबलक आभरन, देखे न सुने न कोऊ ऐसे राज राव के। बावन मतंग माते नंदनू उचित (?) कीने, जरीसेती जरि दीने अंकुस जड़ाव के ॥" 'मिश्रबन्धुविनोद' में से सत्रहवीं शताब्दि के नीचे लिखे हुए जैन कवियों का उल्लेख प्रेमीजी ने किया है:___उदयराज जती-बीकानेरनरेश रायसिंह के आश्रित थे। इन्होंने सं० १६६० में राजनीति सम्बन्धी कुछ दोहे रचे थे। विद्याकमलजी ने संवत् १६६९ के पूर्व सरस्वती का स्तवन 'भगवतीगीता' नाम से रचा था। मुनि लावण्य ने 'रावणमन्दोदरीसंवाद' सं० १६६९ के पहले बनाया था। गुणसूरि ने सं० १६७६ में "ढोलासागर" बनाया था।
SR No.010194
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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