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________________ [हिन्दी बैन साहित्य का संवत सोल पंचवीम में, मागसिर सुदि बीजवार । रास समोझलीयां मणे, पूर्ण हवेवि सार ॥" कवि छीतर मोजावादनिवासी थे । जहाँ मानराजा का राज्य था, वहाँ रहकर सं० १६६० में कवि ने 'होली की कथा' लिग्वी थी। रचना साधारण है-- "वंदी आदिनाथ जगसार, जा प्रसाद पाउं भवपार । वईमान की सेव करी, ज्यों संसार बहुरि नहीं फिरौं ॥ १॥ विण दीपन शीभ आवाश, विण राजा होइ सेना प्राश । जै जो कंत विणा है नारि, स्व इच्छा हीडै संसार ॥२०॥ x शोहै मोजावान निवाश, पजै मनकी सगली आश । शोभे राय मान को राज, जिह बंधी पूरव लग पाज ॥१६॥ छीतर बोल्यो यिननी कर, होया मोहि जिणवाणी धरै । पंडित आगै जोडे हाथ, भूल्यों हो तो पमिज्यौ नाथ ॥१८॥" कवि विष्णु उज्जैन के निवासी थे। उन्होंने सं० १६६६ में 'पंचमीव्रतकथा' रची थी, जिप्तमें भविष्यदत्त का चरित्र संक्षेप में लिखा है । रचना साधारण है। उदाहरण देखिये-- "प्रथम नवति वंदी जिनदेव, ताके चरननि प्रनऊ सेष । औह गौतमु गनराग मनाइ, मुनि सारद के लागौं पाइ ॥१॥ पुरी उजनी कपिनि को दाम, विस्नु तहां करि रशी निवासु । मन वच क्रम सनी मनु कोइ, वध्या सुनै पुत्रफल होई ॥"
SR No.010194
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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