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________________ १२८ [हिन्दी चैन साहित्य का नगर (इटावा) के एक भाई के पास देखने को मिला था। इसे उन्होंने मल्लपुर में लिखा था . कवि मुंदर की दो रचनायें 'सुन्दरसतसई' और 'सुन्दरविलाम' बताई जाती हैं। उक्त गुटका में जो पद्य दिये हैं, वह 'मुंदविलास' के हो सकते हैं। उदाहरण देखिये "कहा धरै सिरि जटा कहा निति माम मुंडाये; कहा धरै मुम्बि मानि कहा तनु भस्म चढ़ाये। पंच अगनि साधं सदा धूम सहित बहु बार; क्रिया हेतु जाणी नहीं तो क्यों सिव लहै गंवार ॥ प्रस्थर की करि नाव पार-वधि उतन्यो चाहै; काग उड़ावनि काज मूद चिंतामणि थाहैं । वैसि छाह बादल मणा रचै धूम के धाम; करि क्रिपाण सेज्या रमै ते क्यों पावै विमराम ॥ अगनि पुज मैं पैसि कहत वमधारय चापी; कनक मेर मुसि आण गेहि गुपना करि राषौं । बालू से भरि घाण तेल कानुण की पेलें: गिरि पर कवल उगाह दव की जुवा खेलें ॥ रोपि रुप चणि तणों भाव लैंग की हौस; ____आपण हत जाणे नहीं ते देत दई को दोस । सुपर्ने संपति पाइ बहुरि सो थिर करि जाणे; उपवण सींचण काजि कुम्भ काचां भरि आणे ।। जीव दया पालें नहीं चाहे सुसुख अपार; बा बोज बबूल की पणिसो क्यों फलति अनार । निति प्रति चित आत्मा करें नम की भास; तिनको कवि सुन्दर कहै मुकति पुरी होई वास"
SR No.010194
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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