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संक्षिप्त इतिहास]
१२७ __ आगरे में शाह नरदी के सुराज्य का उल्लेख कवि ने खूब किया है'महर आगरी नी मुरवास, जिहिपुर नाना भोगविलास ॥८॥ नृपति नरदी शाहि मुजान, अरितम तेज हरन मा भान । दृष्टनि पोरी दुष्टनि हनें, कॉपहि मनि जु माह गुन गनै ॥५॥
जाकै राज मुप्यको माज, सब कोई करै धर्म को काज ॥१३॥ होहि प्रतिष्टा जिनवर तनी, दीयहि धर्मवंत बहुधनी । एक करावहि जिगवर धाम, लागें जहां अमंपिन दाम ॥१४॥ एक लिग्वाके परम पुरान, एक कहि सनीक प्रधान । राज बैन कोर मकान न लौ, कविना कवित्न नपी तप तपें ।।१।। एसी औसर पी राज, सी बुधि कसें मी माज । भयो न हह सुप की कंद, यह मन मांहि विचार नंद ॥ १६॥'
इस प्रकार कवि के समय में आगरा में साहित्य और धर्म की पुण्यधारा वह रही थी। इनके 'यशोधर चरित्र' की एक प्रति मं० १९७२ की लिखी हुई श्री नयामंदिर दिल्ली के सरस्वतीभंडार में ( नं० अ ३६ ख ) मौजूद है। वहाँ के 'पंचायती मंदिर के भंडार' में इन्हीं कवि नंद का सं० १६६३ का रचा हुआ 'सुदर्शनचरित्र' भी मौजूद है।
कर्मचंद्रकृत 'मृगावती चौपई' सोनीपत के पंचायती मंदिर के शास्त्रभंडार में मौजूद है, जिसे बायू माईदयाल जी ने सं० १६०५ का लिखा हुआ बनाया है । ( अनेकान्त वर्ष ५ पृ. २१६ )
मुन्दरदासजी वागड़देश के निवासी विदित होते हैं। उनके हाथ का लिखा हुआ सं० १६७८ का एक गुटका हमें जसयन्न