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________________ १२६ [ हिन्दी जैन साहित्य का दिल्ली के शास्त्र भण्डार ( नं० अ ४९-ग) में विद्यमान है । भाषा गुजराती मिश्रित है । उदाहरण देखिये "रास भणिसुं रलीया मणौ, जं सुणि कोकिल जिम कलिरव करइ, माम सील हियइ थिर थाइ । वसंत कह अंब पसाइ ॥ कह० ॥ x x X X जेहवड चंचल कुंजर कान, वेग पडह जिम पाकड जो पान | जेहत्री चंचल बीजली, जेहवो चंचल संध्या नो वाण ॥ शुभ अणी जल जेहवउ, तेहवो जोवनम्युं अभिमान । पिण पिण जाड़ छह छजिनउ, विषय म गचिड्यो विग्रह समान ॥ X X X X श्री पूज्य पामचंद्र तणइ सुपमाय, सीस धरह निजनिरमल भावि । नयर जालोरह जागतउ, हिवह नेमि नमुं तुम्हें बे कर जोड़ि ॥ X X x X , सामि दुरित नह दुष सह हरि हरि बेगि मनोरथ माहरा परि । आस्युं संगम आपिड्यो, हिव इम वीनवह एम श्रीविजयदेवसूरि ॥" इसमें नेमि राजुल कथा का वर्णन है । कवि नन्द आगरे के निवासी गोयल गोत्री अग्रवाल थे । इन्होंने सं= १६७० में 'यशोधरचरित्र भाषा चौपई रचा था, जिसमें उन्होंने अपना परिचय निम्न प्रकार लिखा है -- "अप्रवार है वंश गौना थानको, गोइलगीत प्रसिद्ध चिह्नता ठाव की । माता चंदा नाम पिता भैरी भन्यौ, परि हॉक नंद कही मनमोद सुगुनगनु - ना गन्त्रौ ॥ ६०७ ॥ ● यहाँ पर कुछ अशुद्धि मालूम होती है । शायद 'परि' के स्थान पर 'कवि'शब्द है । पहले एक स्थल पर कवि ने अपना नाम 'नंद' लिखा है ।
SR No.010194
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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