________________
संक्षिप्त इतिहास]
सजल जलद तन मुकुट सपत फन,
कमठ दलन जिन नमत बनरसि ॥" निम्नलिखित छन्दों में जीव और शरीर की भिन्नता का विशिष्ट वर्णन देखिए"देह अचेतन प्रेत दरी रज,
रेत भरी मल खेत की क्यारी । व्याधि की पोट अराधि की ओट,
उपाधि की जोट समाधि सौ न्यारी ॥ रे जिय ! देह करे सुख हानि,
इते परि तोहि तु लागत प्यारी । देह तु नोहि तजेगि निदान पि,
न हित जं क्युं न देहकि यारी ॥७॥ और भी पढ़िये"त की मी गर्दी किधों मदी है मसान केसी,
अंदर अंधेरी जैसी कंदरा है सैल की। ऊपर की चमक दमक पटभूखन की,
धोखे लागे भली जैसी कली है कनैल की। आगुन की ऑडी महा भोंडी मोहकी कनोंडी,
मायाकी ममूरति है मूरनि है मैल की। मी देह याहि के मनेह याकी संगति सों,
है रही हमारी मति कोल कमे बल की ॥" इस छोटे-से दोहे में कवि ने कितने मर्म की बात कह दी है
"जाके घट समता नहीं, ममता मगन सदीव । रमता राम न जानहीं, सो अपराधी जीव ॥"