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संक्षिप्त इतिहास]
११५ देशी भाषायें भी जानते थे। उनके विषय में कई किंवदन्तियाँ प्रचलित हैं, जिनपर सहसा विश्वास नहीं किया जा सकता। किन्तु इसमें शक नहीं कि कविवर जहाँगीर बादशाह और महा कवि तुलसीदासजी के समकालीन थे और यह संभव है कि उनका परस्पर साक्षात्कार हुआ हो । 'ज्ञानी पातशाह ताको मेरी तमलीम है'-कवि का यह चरण बादशाह जहाँगीर के सम्पर्क में किमी रूप में आने की सम्भावना प्रकट करता है। हो सकता है कि बादशाह जहाँगीर ने उनसे सलाम करने के लिये कहा होगा अथवा उनकी आल्यात्मिकता की वार्ता सुनकर उन्हें तुला भेजा होगा और तब कविवर न शिप्राचार निभाने के लिये उक्त चरण वाला पदा रचकर कहा होगा।
इसी प्रकार महाकवि तुलसीदासजी से भो साक्षात्कार होना निग असंभव नहीं है। जब मं० १६८० में गोस्वामी तुलसीदासजी दिवंगत हुये थे, उस समय कविवर की अवस्था ३७ वर्ष की थी । उस समय वह अवश्य ही प्रतिभाशाली अनुभवी कवि हो गये थे। किन्तु आश्चर्य है-साक्षात्कार का उल्लेम्ब कहीं नहीं है। यदि वह परम्पर मिले होते नो उमका उल्लेख कहीं न कहीं मिलना चाहिए था। इनके जीवन में समानता भी दृष्टिगोचर होती है-दोनों महाकवि यौवनागम पर मत्त हुए मिलते हैं । तुलसीदासजी अपनी स्त्री के प्रेम में अंथे हुये, तो बनारसोदासजी इश्कबाजी में फस गये। दोनों कवियों को महा. मारी रोग के प्रकोप का भी कटु अनुभव था। दोनों की कविताओं में भी साम्य है । कविवर वनाग्मीदासजी जिनवाणी को स्तुति में कहते हैं