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________________ ११४ [हिन्दी चैन साहित्य का जवाहरात का व्यापार किया था और जो जसू अमरसी ओसवाल के छोटे भाई थे।' कुंवरपालजी बनारसीदासजी के अभिन्न-हृदय मित्र थे। 'सूक्तिमुक्तावली' का पद्यानुवाद कविवर ने उनके साथ मिलकर किया था। जगजीवनजी भी आगरे के रहनेवाले विद्वान थे। 'शानियों की मंडली में उनका भी विकास था ।' मं. १७०१ में बनारसीदासजी की सभी फुटकर रचनाओं का संग्रह 'बनारसीविलास' नाम से किया था। सारांशतः आगग उस समय साहित्य और ज्ञान का केन्द्र बना हुआ था। यद्यपि कविवर बनारसीदासजी का जन्म एक धनी और सम्मान्य कुल में हुआ था, परन्तु उनके भाग्य में चैन से रहना नहीं बदा था । धन के लिए वह प्रायः जीवन भर दौड़-धूप करते रहे, परन्तु फिर भी कष्टों से मुक्त न हुए। उनका विवाह केवल ग्यारह वर्ष की छोटी उम्र में हुआ था और आठ वर्ष की अवस्था से उन्होंने विद्या पढ़ना प्रारंभ कर दिया था। यद्यपि उन्होंने कुछ अधिक नहीं पढ़ा था. परन्तु अपनी स्वाभाविक प्रतिभा के कारण आगे चलकर वह एक अच्छे विचारक और सुकवि हो गये थे। कवित्व-शक्ति तो उन्हें प्रकृति-प्राप्त थी। यही कारण है कि न्होंने चौदह वर्ष की अवस्था में ही एक हजार दोहा चौपाइयों का नवरस ग्रन्थ बना डाला था, जिसे उन्होंने आगे चलकर गोमती में बहा दिया था। वह संस्कृत प्राकृत के अतिरिक्त अनेक १. अर्धक०, पृ. ८१. १. जगजीवनजी ने स्वयं लिखा है :"समै जोग पाइ जगजीवन विख्यात भयो। शानिन की डिली में जिसको विकास है।"
SR No.010194
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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