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[हिन्दी जैन साहित्य का बनारसीदासजी एक महान क्रान्तिवादी सुधारक विश्वकवि थे। वह सारे विश्व की हितकामना के रंग में रंगे हुए थे। ___पं० नाथूरामजी प्रेमी ने कविवरजी के विषय में लिखा है कि इस शताब्दी के जैनकवि (यों) और लेखकों में हम कविवर बनारसीदासजी को सर्वश्रेष्ठ समझते हैं। यही क्यों, हमारा तो ख्याल है कि जैनों में इनसे अच्छा कोई कवि हुआ ही नहीं। ये आगरे के रहनेवाले श्रीमाल वैश्य थे। इनका जन्म माघ सुदी ११ सं० १६४३ को जौनपुर नगर में हुआ था। इनके पिता का नाम खरगसेन था। ये बड़े ही प्रतिभाशाली कवि थे। अपने समय के ये सुधारक थे। पहले श्वेताम्बर सम्प्रदाय के अनुयायी थे, पीछे दिगम्बर सम्प्रदाय में सम्मिलित हो गए थे; परन्तु जान पड़ता है, इनके विचारों से साधारण लोगों के विचारों का मेल नहीं खाता था। ये अध्यात्मी या वेदान्ती थे। क्रियाकाण्ड को ये बहुत महत्त्व नहीं देते थे। इसी कारण बहुत से लोग इनके विरुद्ध हो गये थे। यहाँ तक कि उस समय के मेघविजय उपाध्याय नाम के एक श्वेताम्बर साधुने उनके विरुद्ध •एक 'युक्तिप्रबोध' नाम का प्राकृत नाटक ही लिख डाला था, जो उपलब्ध है। उससे मालूम होता है कि इनको और इनके अनुयायिों को उस समय के बहुत से लोग एक जुदा ही पन्थ के समझने लगे थे। उनका यह मत 'बानारसी' या 'अध्यात्मी' कहलाता था। उस युग की मांग उसे कहना चाहिये । वैसे कविवरजी ने उसमें जैनधर्म के एक पक्षविशेष को मुख्यता देने के अतिरिक्त कोई नई बात नहीं फैलायी थी। वह सारे जगत् को 'अध्यात्मी' बनाकर विश्व को
*हि. सा. ३. पृ.१