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संक्षिप्त इतिहास]
खेलइ खेल खंडो कली मोकली सहायर साथ । अंजनासुंदरी सुंदरी मंजरी प्रही करी हाथ ॥५४॥ मधुकर करई गुंजारव मार विकार वहति । कोयल करइं पटहुकड़ा इकड़ा मेलवा कंत ॥ मलयाचल यो चलकिउ पुलकिड पवन प्रचंड । मदन महानृप पाझइ विरहीनि सिर दंड ॥५५॥। एणिं समई नंदीसर वरई सुरवर जाइ यात्र । दीसह गयण वहंता कर गृही कुसुमनां पात्र ॥२
इणि परिगायु अंजना, सुंदरी नंदन धीर । द्रव्य भाव वेरी प्रबल, जिण जीत्या जग बड़ वीर ॥ चरम शरीरी सुगुण नर, गातां होइ आणंद । बइमन वंछित संपदा, हम बोलइ गणि महाणंद ॥" प्रशस्ति में कवि ने लिखा है कि हीरविजयजी ने अकबरशाह को प्रतिबोधा था और श्रीविजयसेन गणि ने अकबर के दरबार में भट्ट नामक विद्वान् को बाद में परास्त किया था। इसके उपलक्ष्य में अकबर ने अमारि घोषणा की थी:____ "श्रीविजयसेन गणधार रे ॥ विस्ता० ॥ जिणि शाहि अकयर नी सभा मांहि भट्ट सुं रे कीधो कोधो बादुभभंग रे । मिध्यामतरेषडी करी रे जिणि गब्यु गब्यु जिन शासनि रंग रे ॥१॥ गाय-वृषभ-महिपादिक जीवनी रे, कीधी कीधी नित्य अमारि रे । बंदि नकालइ को गुरुवयण थीरे, द्रव्य अपूत्र नुं दारि रे ॥१२॥"
१. सखी के साथ भेज करके । २. ममन में जाते हुये हाथों में कुममपात्र लिए दिखायी दिये । ३. दो।