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संक्षिप्त इतिहास] के हाथ का लिखा हुआ है । उस समय उन्होंने जहाँगीर बादशाह का राज्य लिखा है और अपने को काष्ठासंघी माथुरान्वयी पुष्कर गणीय भ० सकलचंद्र के पट्टधर मंडलाचार्य माहेन्द्रसेन का शिष्य बताया है । यह गुटका उन्होंने संचिका (संकिशा ? ) में लिपिबद्ध किया था। वह अग्रवाल दि० जैन थे * और अनेक स्थानों में रहकर उन्होंने धर्मसाधन किया था। वैसे वह सहजादिपुर के निवासी थे, परंतु संकिसा और कपिस्थल (कैथिया?) में आकर रहे थे, जो जिला फर्रुखाबाद में हैं। इनकी रचनाओं की भाषा अपभ्रंश प्राकृत के शब्दों से रिक्त नहीं है। इन्होंने (१) टंडाणारास, (२) बनजारा, (३) आदत्तिवतरासा, (४) पखवाडे का रास, (५) दशलाक्षणी रासा, (६) अनुप्रेक्षा-भावना, (७) खीचड़ी. रासा, (८) अनन्तचतुर्दशी चौपाई, (९) सुगंधदसमीकथा, (१०) आदिनाथ-शान्तिनाथविनती, (११) समाधीरास, (१२) आदित्यवारकथा, (१३) चुनड़ी-मुकतिरमणी, (१४) योगीरासा, (१५) अनथमी, (१६) मनकरहारास, (१७) वीरजिनेन्द्रगीत, (१८) रोहिणीव्रतरास, (१९) ढमालराजमती नेमीसुर और (२०) सज्ञानी ढमाल नामक रचनायें रची थीं, जो उपर्युक्त गुटकामें लिपिबद्ध हैं। इनके अतिरिक्त आपकी एकाअन्य रचना मृगांकलेखाचरित्र का पता आमेरभंडार की सूची से चलता है। "जैन-सिद्धान्तभास्कर" (भा० ४ किरण ३ पृ० १७७ १८४ ) में हमने इन सब रचनाओं का खास परिचय करा दिया है। इनमें 'ढमाल' छन्द की कृतियाँ उस समय की एक विशेष
8 गुरु मुणि माहिदसेण-चरण नमि रासा कीया। दास भगवती अगरवालि जिणपद मनु दीया ॥