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________________ [हिन्दी बेन साहित्य का जोगीय रासौ सीपहु भावक, दोसु न कोई लीजै। जो जिनदास त्रिविधि त्रिविधिह, सिद्धहं सुमिरन कीजै ॥४२॥" 'जम्बूचरित्र' में कवि ने अपना परिचय इस प्रकार दिया है:"संवत तौ सोला सै भए, बयालीस ता ऊपर गये। भादों बदि पाचै गुरुवार, तादिन कथा कियौ उच्चार ॥११॥ अकबर पातस्याह का राज, कीनी कथा धर्म के काज । भूल्यो बिसरयो अक्षर जहाँ, पंडित गुणी सवारी तहाँ ॥१२॥ कोई धर्मनिध पासा साहु, टोडर सुत आगरे सनाह । ताके नाय कथा यह करी, मथुरा मैं जिहि निसही करी ॥१३॥ रिषभदास अरु मोहनदास, रूप मंगद अरु लछमीदास । धर्मवृद्धि तुम ही यौ चित्त, राज करे परवार संजुत्त ॥१४॥ ब्रह्मचार भयौ संतीदास, ताके सुत पांडे जिनदास । तिन या कथा करी मन लाय, पुन्य हेत मित नत वर ताहि ॥९५॥" मुनि कणयंबर विरचित 'एकादस प्रतिमा' नामक रचना हमारे संग्रह के एक गुटका में है। उसके कुछ छन्द निम्न प्रकार हैं: "मुणिवरु जंपइ मृगणयणी, अंसजलोल्लिय-गग्गिरवयणी ॥ इंदिय कोमल दीहर नयणी, पहुकन अंबर भणमिपई । किं मइ लभह सिवपुर रमणी, मुणिवरु जंपइ मृगणयणी ॥१॥ जइ तुहुं इच्छहि वयणु सहोयरि, पंचुंवर फल वनहि सुंदरि । सत्त उवसणा दूरि करि, जिण वरु सामिउं हियई धरिजहि ॥ जइ सम्मतुवि णिम्मलउ, तर तुहुं चदहि सुदंसण पडिमा ॥२॥ मु. पहु कणयंवर भणमिपई, इम इह लब्भइ सिवपुरि रमणी ॥ मु. मालदेव-बड़गच्छीय भावदेव सूरि के शिष्य थे। इनके रचे हुए दो ग्रन्थ उपलब्ध हैं। पहला प्रन्थ 'पुरन्दरकुमरचउपई.
SR No.010194
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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