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________________ संक्षिप्त इतिहास]. "विश्वनाथ विमल गुण ईश, विहरमान बंदौ जिन बीस । गणधर गौतम शारद माइ, वर दीजै मोहिं बुद्धि सहाइ । पढ़ सुने जे परमानन्द, कल्पवृक्ष महा सुख कन्द । अष्ट सिद्धि नवनिधि सो लहै, अचल कीर्ति पंडित इम कहै ॥" इनकी एक रचना 'अठारहनाते' नामक है, जिसमें आपने अपना परिचय यों लिखा है "धर्म कीये धमि होत है, धर्म कीया धन होय । अचलकीरति कवि यों कहै, धर्म करौ सब कोय ॥ -काममहा० ॥५॥ सहर पिरोजाबाद में हों, नाता की चौढाल । बार बार सब सौ कहो हो, सीषो धर्म विचार ॥ -काम महाबली जी, सुन पिय चतुर सुजान ॥५४॥" श्री दि० जैन पंचायती मन्दिर दिल्ली की प्रति में रचयिता का नाम कमलकीर्ति न मालूम किस तरह लिखा गया है। पाण्डे जिनदास के रचे हुये 'जम्बूचरित्र' और 'ज्ञानसूर्योदय' नामक दो पद्य ग्रन्थ मिलते हैं। कुछ फुटकर पद भी हैं । 'जम्बूचरित्र' संवत् १६४२ में रचा गया था। उनके 'जोगीरासा' का नमूना देखिये "ना हो राचौ णा ही विरची, णा कछु भंति ण आणौ। जीव सबै कुछ केवलज्ञानी, आप्पु समाणा जाण ॥२१॥ मोह महागिरि पोदि बहाऊँ, इंदिय थूलि न रापउ । कंदर्प सर्प निवप्प करे बिनु, विषय विषम विषु नाखौ ॥२२॥
SR No.010194
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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