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संक्षिप्त इतिहास]
कवि ब्रह्मगुलाल चंदवार ( फिरोजाबाद, जिला आगरा) के पास टापू नामक ग्राम के निवासी पद्मावती पुरवाल जैन थे। उनका जीवनचरित्र कवि पुत्रपति ने लिखा है, जिससे प्रगट है कि वह दिगम्बर मुनि हो गये थे। उनकी रची हुई "कृपण जगावन कथा' अलीगंज के श्री शान्तिनाथ दि० जैन मंदिर के शास्त्र भंडार में हमें देखने को मिली है। दिल्ली के पंचायती मंदिर में भी इसकी एक प्रति है। यद्यपि इसकी रचना असाधारण नहीं है, परन्तु इसकी कथा बड़ी रोचक और सरस है। इसी कारण इस रचना में काव्यकी सरसता आ गई है। कवि ठकरसी के 'कृष्ण चरित्र' से इसका कथानक भिन्न हैं जिसे कवि ने किसी संस्कृत भाषा के कथा कोष से लिया है। मंगल पद्य इसके जरा देखिये
"कुमति विभंजन सुमति करु, दुरितदलन गुणमाल । सुमतिनाथ जिन चरण को, सेवकु ब्रह्म गुलाल ॥"
"सुमिरि सुमति जन मंगल धामा, विघटण विषण, करण सुषणामा । बढे सुमति कवि सरें सुकाज, ध्यावहु कवि जन सब जिनराज ॥" __ इस ग्रन्थ की कथा का सार यह है कि राजगृह नगर में वसुपति राजा था । वहाँ ही एक सेठ की पुत्री रहती थी; जिसके जन्मते ही कुटुम्ब का नाश हो गया था। इसलिये लोग उसे क्षयं. करी कहते थे । एक दिन वसुपति राजा वरदत्त मुनीन्द्र की वंदना को पुरवासियों सहित गया । क्षयंकरी भी गई । मुनि अवधि ज्ञानी थे। उन्होंने क्षयंकरी की दुर्दशा का कारण उसका पूर्व संचित कर्म बताया। पहले एक भव में वह उज्जैन के सेठ धवल की पत्नी