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संक्षिप्त इतिहास]
इसी उपर्युक्त पोथी में प्राचीन हिन्दी की कुछ और रचना हैं।
मुनि चारित्रसेन कृत 'समाधि' पहली रचना है। परिचय के लिए नमूना देखिए:
"गणहर भासिय ए जिय संति समाधी । दंसण णाण चरित्त समिद्धो, समाधी जिणदेवहं दिट्ठी। जो करेह सो सम्माइट्ठी ॥संमाधी ॥॥१॥
जीवन जाणहिं तुटुं अप्पणाउं सरीरु । अप्पउ जाणहि णाण गहीर ॥ सम्माधी० ।। x xxx
अइसउ जाणि जिया वहस्थ विभिन्ना । पुम्गल कम्मवि अप्पउ भिन्ना ॥ सम्माधी० ॥ जोवणु धणिय धणु परियणु णासह । जीव हो ! धंमु सरीसउ होसह ॥ सम्माधी० ॥
चरितसेणु मुणि समाधि पढ़तउ। भवियहं कमु कलंकु उहंतउ ॥ सन्माधी० ॥ नेमि समाधि सुमरि जिय विसु मासह । जिय परमरकरि पाउ पणासह ॥ सम्माधी० ।। सोहणु सो दिवसु समाधि मरीजइ । जम्मण मरणह पाणिउ दीजह ॥ सम्माधी० ॥ अइसी समाधि जो अणु दिणु सावइ ।
सो अजरामरु सिव सुह पावइ ॥ सम्माधी ॥५०॥" देखिए इसमें समाधि मरण का जो चित्राङ्कन किया गया है वह कितना सुन्दर और उपयोगी है।