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________________ ८५ संक्षिप्त इतिहास] इसी उपर्युक्त पोथी में प्राचीन हिन्दी की कुछ और रचना हैं। मुनि चारित्रसेन कृत 'समाधि' पहली रचना है। परिचय के लिए नमूना देखिए: "गणहर भासिय ए जिय संति समाधी । दंसण णाण चरित्त समिद्धो, समाधी जिणदेवहं दिट्ठी। जो करेह सो सम्माइट्ठी ॥संमाधी ॥॥१॥ जीवन जाणहिं तुटुं अप्पणाउं सरीरु । अप्पउ जाणहि णाण गहीर ॥ सम्माधी० ।। x xxx अइसउ जाणि जिया वहस्थ विभिन्ना । पुम्गल कम्मवि अप्पउ भिन्ना ॥ सम्माधी० ॥ जोवणु धणिय धणु परियणु णासह । जीव हो ! धंमु सरीसउ होसह ॥ सम्माधी० ॥ चरितसेणु मुणि समाधि पढ़तउ। भवियहं कमु कलंकु उहंतउ ॥ सन्माधी० ॥ नेमि समाधि सुमरि जिय विसु मासह । जिय परमरकरि पाउ पणासह ॥ सम्माधी० ।। सोहणु सो दिवसु समाधि मरीजइ । जम्मण मरणह पाणिउ दीजह ॥ सम्माधी० ॥ अइसी समाधि जो अणु दिणु सावइ । सो अजरामरु सिव सुह पावइ ॥ सम्माधी ॥५०॥" देखिए इसमें समाधि मरण का जो चित्राङ्कन किया गया है वह कितना सुन्दर और उपयोगी है।
SR No.010194
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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