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________________ जैन भक्त कवि : जीवन और साहित्य भगवान् पार्श्वप्रभुके पूर्वभवका नाम ललितांग था । उन्होंने जिनेन्द्रकी भक्ति - से ही तीर्थंकर पद प्राप्त किया था । अतः यह चरित्र, पार्श्वप्रभुके ही पूर्वभवका चरित्र है । इसी कारण कविने इसको 'पुण्य चरित्र' कहा है, "इय पुण्यवरिय प्रबंध, ललिअंग नृपसंबंध | पहु पास चरियह चित्त, उद्धरिय एह चरित ॥ ७३ ॥ | " ७१ श्री ईश्वरसूरिने, मालवाके राजा नसीरुद्दीन ( १४९८-१५१२ ई० ) के प्रधानमन्त्री श्रीपुंज ( श्रीमाली वंश ) की प्रार्थनासे, इस ललित काव्यका निर्माण, वि० सं० १५६१ में किया था । कविने 'ललितांगचरित्र' के प्रारम्भमे ही आदिप्रभु ऋषभदेव और तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथको नमस्कार करते हुए लिखा है, "पढम ढम जिणंद, पदम निवं पदम धम्म धुर धरणे । वसह वसह जिणेसं नमामि सुरनाभिय पयदेवं ॥ १ ॥ सिरि आससेण नरवर, विशालकुल भमर भोगिंदा । मोदि सहिय पासो, दिसउ सिरि तुम्ह पहु पासो ॥ २ ॥ " १६. चतरुमल ( वि० सं० १५७१ ) कवि चतरुमलका जन्म श्रीमालवंशमें हुआ था । उनके पिताका नाम जसवन्त था। वे बड़े ही धर्मात्मा और सदाचारी व्यक्ति थे । उनके घर पुत्र जन्म हुआ, जिसका नाम चतरु रखा गया । चतरु ज्यों-ज्यों बढ़ने लगा, उसमे जैनधर्मकी निष्ठा भी बढ़ती गयी | जैन पुराणोंके अध्ययनसे, उनका मन नेमोश्वरके चरित्रमे विशेष रूपसे रमा । उन्होंने वि० सं० १५७१ में नेमीश्वरगीतकी रचना की कवि चतरुमल 'गढ़ गोपाचलु' अर्थात् ग्वालियरके रहनेवाले थे । उस समय १. जैनगुर्जरकवि, प्रथम भाग, पृष्ठ १०५ । २. श्रावग सिरीमल अरु जसवन्त, निहचै जिय धर्म धरंत । चरु चलन भवि वंदतो, पुत्र एक ताकेँ घर भयो । जनमत नाउ चतुरु तिन लियो, जैनधर्म दिठु जीयहु धरी । नेमि चरित ताकै मन रहे, सुनि पुरान उर गानो कहे ॥ १ ॥ आमेरशास्त्र भण्डारकी हस्तलिखित प्रति । यह प्रति १८२० वि० सं० की है। इसमें ४४ पद्य हैं । ३. वही, पद्य २ ।
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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