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हिन्दी जैन भक्ति-काव्य और कवि ष्ठित किया था। इस प्रतिमाको, श्री यशोभद्रसूरि, मन्त्रशक्तिके बलसे वि० सं० ९९४ मे लाये थे। ___ ईश्वरसूरिका दूसरा नाम देवसुन्दर भी था। उन्होंने 'जीवविचारप्रकरणविवरण', 'ललितागचरित्र', 'श्रीपाल चौपई', 'सटीक षट्भाषास्तोत्र', 'नन्दिषेण मुनिके छह गीत', 'यशोभद्रप्रबन्ध' और 'सुमतिचरित्र'का निर्माण किया। इनमे 'ललितांगचरित्र'का दूसरा नाम 'रासकचूडामणि' और 'यशोभद्रप्रबन्ध'का दूसरा नाम 'फाल्गुचिन्तामणि' भी है। 'सुमतिचरित्र'की रचना वि० सं० १५८१ मे दीवालीके दिन, नाडलाईके मन्दिरमे हुई थी। उसकी भाषा संस्कृत है।' 'ललितांगचरित्र' हिन्दी भाषाका काव्य है। ललितांगचरित्र ___इसमे नृप ललितांगका चरित्र वर्णित है। ललितांग भगवान् जिनेन्द्रका परम भक्त था। अतः इस काव्यका मूल स्वर भक्तिसे ही सम्बन्धित है। इसकी भाषा हिन्दी है; जिसमें प्राकृत और अपभ्रंशके शब्दोका प्रयोग अधिक हुआ है। उसपर गुजरातीका भी प्रभाव है। ईश्वरसूरिके गुरु शान्तिसूरिके 'सागरदत्त चरित्र'मे भी प्राकृत, अपभ्रंश और गुजरातीका मिश्रण है। ___ इस काव्यमे सोलह प्रकारके छन्दोंका प्रयोग हुआ है। वे छन्द इस प्रकार है : गाथा, दूहा, रासाटक, षट्पद, कुण्डलिया, रसाउल्ला, वस्तु, इन्द्रवज्रोपेन्द्रवज्रा, अडिल्ल, मडिल्ल, काव्याबोली, अडिल्लाबोली, सूडबोली, वर्णनबोली, यमकबोली, छप्पय और सोरठी। इस भांति यह काव्य विविध छन्दोमे तो निबद्ध है ही, श्रेष्ठ अलंकार और सरस गुणोंसे भी संयुक्त है। कविने स्वयं इसके काव्य-सौन्दर्यको प्रशंसा करते हुए लिखा है, व "सालंकारसमस्थं सच्छन्दं सरससुगुणसंजुत्तं ।
ललियंगकुमरचरियं ललणाललियम्ब निसुणेह ॥॥" पं० नाथूराम प्रेमीने भी इसके बाह्य और अन्तः दोनों हो प्रकारके सौन्दर्यको प्रशंसा की है।
१. प्राचीन जैनलेखसंग्रह, मुनि जिनविजयजी सम्पादित, द्वितीय भाग, ३३६वाँ
लेख। २. जैनगुर्जरकविश्रो, प्रथम भाग, पृष्ठ १०७ । ३. जैनगुर्जरकविभो, तीजो भाग, पृष्ठ ५३२ । ४. हिन्दी जैन साहित्यका इतिहास, पृष्ठ ३४ ।