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________________ ६७ जैन भक्त कवि : जीवन और साहित्य नमस्कार करनेसे अपार हर्ष होता है। सद्गुरुके प्रसादसे मुझे देवी सरस्वतीकी प्राप्ति हुई है। मै भगवान् महावीरके गुणोको गाता हूँ, जिन्हे सुनकर ही जीव शिवपुरी प्राप्त कर लेता है। ___ लावण्यसमयकी अन्य रचनाओंमे, 'स्थूलिभद्र एकबीसो'-वि० सं० १५५३, 'गौतमपृच्छा चउपई'-वि० सं० १५५४, 'आलोयण विनती'-वि० सं० १५६२, 'नेमिनाथ हमचडी'-वि० सं० १५६२, 'सेरीसा पार्श्वनाथस्तवन'-वि० सं० १५६२, 'वैराग्यविनती'-वि० सं० १५६२, "विमलप्रबन्ध'-वि० सं० १५६८, 'अन्तरिक्ष पार्श्व जिनछन्द'-वि० सं० १५८५, 'सुमति साधु विवाहलो', 'यशोभद्ररास' 'रंगरत्नाकर नेमिनाथप्रबन्ध', 'पार्श्वजिनस्तवनप्रभाती' और 'चतुर्विंशतिजिनस्तवन', भक्तिपरक कृतियां हैं। प्रायः इनके प्रारम्भमे सरस्वतीको वन्दना की गयी है। 'नेमिनाथ हमचडी'. के प्रारम्भमे लिखा है, 'सरसवचन दीयो सरस्वतीरे गायस्यु नेमिकुमारो, सामलवरण सोहामणो, ते राजीमती भरतारो रे हमचडी।' 'अन्तरिक्ष पार्श्वजिनछन्द' मे भी 'सरसवचनयो सरसती मात, बोलीस आदि जस वीख्यात' लिखकर सरस्वतीसे याचना की गयी है। 'सुमति साधु विवाहलो' मे लिखा है, 'सरसति सामिणि दिउ मतिदान मझ मनि अति उमाहला ए।' 'रंगरत्नाकर नेमिनाथ प्रबन्ध' मे कई पद्योमे सरस्वतीके गीत गाये गये है, "तुझ तनु सोहई उज्ज्वल कंति, पूनिम ससिहर परिझलकती, पय धमधम धुग्धर धमकंती, हंसगमणि चालइ चमकंती ॥४॥ चालइ चमकती, जगि जयवंती, वीणापुस्तक पवर धरई, करि कमल कमंडल काजे कुंडल रविमंडल परिकंती करई ॥५॥ सारद सार दयापर देवी, तुझ पय कमल विमल वंदेवि, मागु सुमति सदा तई देवी, दुरमति दूरिथिकी निंदेवि ॥२॥" 'पार्श्वजिनस्तवन प्रभातो' मे, भगवान् पार्श्वनाथको विनती करते हुए कविने. लिखा है, १. सकल जिणंदह पाय नमुं, हिउई हरप अपार, अक्षर जेई बोलिसिउं, साचउ समय विचार । सेविअ सरसति सामिणी, पामिअ सुगुरु पसाउ, सुणि भवीअण जब वीरजिण, पामिअ शिवपुर हाउ ॥१२॥ जैनगुर्जरकविओ, प्रथम भाग, पृ० ६६ । २. जैनगुर्जरकविओ, प्रथम भाग, पृष्ठ ७१-८८ ।
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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