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________________ जैन भक्त कवि : जीवन और साहित्य सारदा स्वामिणि वलीस्तवु जिमि बुद्धि सार हुं वेगी मागुं । गणधर स्वामि नमस्करूं, वली सकल कीरति गुरु भवतार ॥ तास चरण प्रणमीनें, करें सुरासुर सार ||१|| " 'यशोधरचरित्र की महिमाका वर्णन करते हुए कविने लिखा है, “गुणोके भण्डार यशोधरचरित्रको सुनने मात्र से ही मिध्यात्व और राग मोह दूर हो जाते हैं, तथा शिवपुर उपलब्ध होता है । "गुणहतणुं मंडार सुणिइं, जे नर अनुदिन भणें, हिय मैं धरी बहु भाव, ब्रह्म जिणदास इम परिभ तेहने शिवपुरे हाम || " ६३ सम्यक्त्वरास इसमें भगवान् रामको कथाके द्वारा सम्यक्त्वकी महिमा बतायी गयी है । रामचन्द्र सुन्दर तो थे ही, दिनकरके समान प्रतापशाली भी थे । वे शास्त्रवेत्ता, महामती, धार्मिक और देवशास्त्र-गुरुके परम भक्त थे । कविने उनकी भक्ति की है। " जयवंत जय जगि सार सुंदर रामचंद्र बखानिये | लक्ष्मीधर भe भरत शत्रुघ्न च्यारि पुत्र भरि जाणीइये || कुल कमल दिनकर सकल शास्त्र सुज्ञानवंत महामती । देव धर्महं गुरु परीक्षण रामचन्द्र क्षतिपती ॥१॥" श्रेणिकरा इसमें राजा श्रेणिकका वर्णन है। श्रेणिक मगधका राजा था । उसे बिम्बसार भी कहते हैं । इसीका पुत्र अजातशत्रु था, जिसे जैन शास्त्रो में 'कुणिक' कहा गया है । श्रेणिक भगवान् महावीरके मौसा थे। वैशालीके राजा चेटककी एक लड़की त्रिशला, सिद्धार्थ ( महावीरके पिता ) की पत्नी थी, और दूसरी चेलना, श्रेणिककी रानी । श्रेणिक पहले बौद्धधर्मानुयायी बना और बादमे महावीरका भक्त हो गया । महावीर के समवशरणमे श्रेणिक मुख्य प्रश्न- कर्त्ता था | कविने इस 'रास' के आरम्भमे ही लिखा है कि मै भगवान् महावीरके चरणोंमें प्रणाम करता हूँ, और अन्य तीर्थंकरोकी भी स्तुति करता हूँ, क्योंकि वे 'मनोवांछित' को पूरा करनेवाले है । स्वामिनी शारदापर न्योछावर होता हूँ, वे श्रेष्ठ बुद्धि प्रदान करती है, १. इसकी हस्तलिखित प्रति श्रारशास्त्र भण्डार में मौजूद है ।
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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