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________________ ६० हिन्दी जैन भक्तिकान्य और कवि 'समकितरास', 'करकण्डुरास', 'कर्मविपाकरास', 'श्रीपालरास', 'प्रद्युम्नरास', 'धनपालरास', 'हनुमच्चरित्र' तथा 'व्रतकथाकोष' की रचना की थी। इन सबकी भाषा गुजराती, हिन्दी और राजस्थानीका मिला-जुला रूप है। उनकी बाह्य रूप-रेखाको हिन्दी कहा जा सकता है, जिसपर गुजराती और राजस्थानीका विशेष प्रभाव है। उनके रचे गये पूजा-प्रन्थोमे, 'जम्बूदीपपूजा', अनन्तव्रतपूजा', 'सार्द्धद्वयदीपपूजा,' 'चतुर्विशत्युद्यापनपूजा', 'मेघमालोद्यापनपूजा', 'चतुस्त्रिशदुत्तरद्वादशशतोद्यापन' और 'बृहत्सिद्धचक्रपूजा' ज्ञात हो सके है । इनकी भाषा संस्कृत है। वि० सं० १४८१ मे ब्रह्मजिनदासके अनुरोधसे ही उनके गुरु भट्टारक सकलकोत्तिने बड़ालीमे 'मूलाचारप्रदीप' की रचना की। ब्रह्म जिनदासने स्वयं वि० सं० १५२० मे 'हरिवंशरास' का निर्माण किया । अतः उनका समय १५वीं शतीका उत्तरार्द्ध और १६वी का पूर्वार्द्ध माना जा सकता है। उनकी हिन्दी कृतियोंका परिचय इस प्रकार है : आदिपुराण इस ग्रन्थमे २१५ पद्य है । रचनामें संस्कृतके आदिपुराणोंका सहारा लिया गया है। समाप्त करनेकी शीघ्रतामे 'सम्बन्ध-निर्वाह' ठीकसे नही निभ सका। साथ ही प्रबन्धकाव्यका कोई गुण समुचित रूपसे विकसित नहीं हुआ है। फिर भी भाषा कान्योपयुक्त है। प्रसादगुणने सौन्दर्य-सृष्टि की है। ____ कर्मभूमिके उत्पन्न होनेपर, भगवान् ऋषभदेवने षट्कर्मोकी स्थापना की थी। उन्होंने संसारके प्राणियोंको धर्माधर्मका विवेक भी प्रदान किया था। ऐसा करनेमे वे इसलिए समर्थ हो सके कि उन्होने स्वयं भी मुक्तिवधूको प्रत्यक्ष कर लिया था । संसार उनकी जय-जयकार करता था। १. यशोधररास, आदिनाथरास, समकितरास, धनपालरास और व्रतकथाकोष, आमेरशास्त्रभण्डार जयपुरमें, नथा अवशिष्ट रास पंचायती मन्दिर, देहलीके शास्त्रभण्डारमें मौजूद है। २. इनके नाम विभिन्न गुटकोंमें-से लेकर, श्री परमानन्द शास्रीने प्रशस्तिसंग्रह, प्रस्तावनामें, पृष्ठ १२ पर, दिये है। ३. श्रीमत् भट्टारक रत्नचन्दजीने, सरस्वती गच्छके ब्रह्म प्रेमचन्दसे, सं० १८५६, मगसिर सुदी ३, गाँव श्री मैतवालके मध्य पार्श्वनाथ उपासरेमें, इस काव्यकी प्रतिलिपि करवायी। देखिए भामेरशासभण्डारकी हस्तलिखित प्रति ।
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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