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________________ जैन भक्त कवि : जीवन और साहित्य "पुन्व पुषण संजोगि पुणवि मणुवत्तणु पाविउ । विविह दुक्ख व मास सड्ढ गब्मिहिं संताविउ ॥ रमणि नामितलि नाल कारि दुहुं पुप्फहं श्रच्छ । कोसगारिहिंता मुठि पुण जोनि पडित्थइ | را भगवान् ऋषभदेवके दर्शनोंकी महत्ता बताते हुए कविने लिखा है कि हे भगवन् ! तुम्हारे दर्शन करनेसे ऐसा विदित होता है जैसे मुझे चिन्तामणि हो मिल गयी हो, जैसे हमारे अंगनमे कल्पवृक्ष विविध फलोसे फर गया हो, और जैसे हमारे घरमे सुरधेनुका ही अवतार हुआ हो । जिस किसीने भगवान् ऋषभनाथको अपनी भक्ति से प्रसन्न कर लिया, उसकी सभी मनोवांछित अभिलाषाएं पूरी हो जाती है, " दंसण तुम्ह विहाण अच्छ चिंतामणि वडियउ । सुरतरु अंगण अम्ह अच्छ विविहप्परि फरियड ॥ सुरहधेणु अंगणिहिं णाह श्रम्हहं अवयरियड । जइ भेउ सिरि रिसहणाह मणवंछिय सरियड ॥ 2,1 ११. ब्रह्मजिनदास ( वि० सं० १५२० > ५९ इस काव्यकी भाषामे अपभ्रंश और प्राकृतके प्रयोग अधिक है। फिर भी उसके सौन्दर्यमे कहीं पर व्याघात उपस्थित नही हुआ है । भाषामे प्रवाह है और भावोंमे स्वाभाविकता | उपयुक्त दृष्टान्तोंसे रस उत्पन्न हो सका है । १. वही, नौवॉ पद्य | २. वही, २७वॉ पद्य । ३. जैन ग्रन्थप्रशस्तिसंग्रह, प्रस्तावना, पृष्ठ ११ । ब्रह्मजिनदास भट्टारक सकलकीर्त्तिके छोटे भाई और शिष्य थे । वे भी कलकीर्त्तिके समान ही उत्तमकोटिके विद्वान् थे। उनकी संस्कृत कृतियोंमें 'जम्बूस्वामीचरित्र', 'हरिवंशपुराण' और 'रामचरित्र' का नाम प्रमुख रूपसे लिया जा सकता है । 'जम्बूस्वामीचरित्र' की रचनामे उन्हे अपने शिष्य ब्रह्मचारी धर्मदासके मित्र - कवि महादेवसे सहायता प्राप्त हुई थी। 'धर्मपंचविंशतिका' अथवा 'धर्मविलास' उन्हीकी रचना है । इनके अतिरिक्त उन्होंने 'यशोधररास', आदिनाथरास, 'श्रेणिक रास',
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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