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हिन्दी जैन भक्ति-कान्य और कवि १०. श्री पद्मतिलक (वि०की१५वीं शतीका अन्त-१६वीं शतीका भारम्भ)
श्री पद्मतिलककी एक मात्र कृति 'गर्भविचारम्तोत्र' है। उससे ऐसा कुछ प्रकट नहीं होता, जिसके आधारपर उनका जीवन-वृत्त अथवा गुरु-परम्परा मादिके विषयमे लिखा जा सके। यह कृति उस गुटकेमे निबद्ध है, जो वि० सं० १६२६ में लिखा गया था, किन्तु 'गर्भविचारस्तोत्र' की भाषासे स्पष्ट है कि उसकी रचना १५वी सदीके अन्त अथवा १६वीके आरम्भमे हुई थी। गर्भविचारस्तोत्र
इस स्तोत्रमे २८ छन्द है। गर्भवासके दुःखोंका वर्णन करनेके कारण ही इसको 'गर्भविचारस्तोत्र' कहते है। यह कोट कांगड़ाकी ऋषभ-मूर्तिको लक्ष्य कर लिखा गया है। कोट कांगड़ाके तीर्थंकर ऋषभनाथ दुःख और दुरितोको नष्ट करनेवाले है। उन भगवान्का जाप करनेसे जीवका मन शुद्ध होता है, और वह संसारके भ्रमणसे मुक्त हो जाता है,
"सिरि रिसहेसर पद्य णमेति, पुर कोटहं मंडण । कांड दुग्गहं पढमंतित्य दुह दुरिय विहंडण ॥ सामी जंप किंपि दुरक णिय माणस केरउ ।
गरुवा जिणवर किमइं गखि मुझ भवनउं फेरउ ॥" कविने लिखा है कि मैं अनादिकालसे निगोदमें घूमता रहा । वहाँसे निकला तो एकेन्द्रिय - अग्नि, वायु और वनस्पति आदि बना, मनुष्य जन्म न मिल सका,
"श्रादि अनादि निगोद मांहि बहु कालु भमिउं महं । सत्तर साढऊसासमज्झि भव पूरिय जिण महं । णिग्गोदहं णीसरिउ णाह पडियउ एगिदिहिं ।
पुढवि आउ तहं, तेउ वाउ वणसइ दुहुँ भेदिहिं ॥" पूर्वजन्मके पुण्य-संयोगसे मनुष्य-भव मिला। किन्तु इसके प्राप्त होनेमें भी जीवको नौ मास तक गर्भके दुःख सहने पड़े। वह नौ मास तक रमणीके नाभितलके नीचे पड़ा-पड़ा दुःख सहता रहा,
१. यह गुटका बाबू कामताप्रसादजी जैन, अलीगंजके पास है। २. गर्भविचारस्तोत्र, पहला पद्य, वि० सं०,१६२६ के लिखे हुए गुटकेकी हस्तलिखित प्रति । ३. वही, तीसरा पद्य ।