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जैन भक्त कवि : जीवन और साहित्य १४८५ ), 'कलिकालरास' (वि० सं० १४८६), 'दशार्णभद्ररास', 'जंबूस्वामी वीवाहला' ( वि० सं० १४९५ ) और 'स्थूलिभद्र बारहमासा'की रचना की थी। ___ कविने विद्याविलास पवाडोमे प्रथम जिनेश्वर, शान्तिनाथ, नेमिकुमार और पार्श्वनाथको नमस्कार करते हुए, शारदासे वरदानको याचना की है और उनसे सम्बन्धित मुख्य तीर्थोके प्रति भी भक्ति-भाव प्रदर्शित हुआ है।
“पहिलं पणमीय पढम जिणेसर, सित्तुंजय अवतर, हथिणाउरि श्री शांति जिणेसर उजंनि निमिकुमार । जीराउलिपुरि पास जिणेसर, साचउरे वर्द्धमान,
कासमीर पुरि सरसति सामिणि, दिउ मुझनई वरदान ॥२" 'जम्बूस्वामी विवाहला', जम्बूस्वामीकी भक्तिसे सम्बन्धित है। उसके मंगल पद्यमे वीर जिनेश्वर, गौतम गणधर और देवी सरस्वतीका स्मरण किया है।
"वीर जिणेसर पणमीअ पाय, गणहर गोअम मनि धरीअ, समरी सरसती कवि अण पाय, वीणा पुस्तक धारिणी ए। बोलिसु जम्बू चरित रसाल, नव नव माव सोहामणुअ, रयणह संख्या ढाल रसाल, भविअण माविहिं सोमलुए ॥३-२॥ 'स्थूलिभद्र बारहमासा में मुनि स्थूलिभद्रके बारह महीनोंको जीवनचर्याका भक्ति-पूर्वक वर्णन हुमा है। बारहवर्षीय अकाल पड़नेपर, जब भद्रबाहु स्वामी दक्षिणमें चले गये, तो पाटलिपुत्रमे जैनसंघके अधिष्ठाता स्थूलिभद्र हुए। उन्हें ११ अंगोंका ज्ञान था। इस बारहमासामें २८ पद्य है। अन्तमे लिखा है कि जो आनन्दपूर्वक बारहमासा पढ़ता है, उसके पास ऋद्धि-सिद्धि अचल होकर निवास करती है।
१. कलिकालरास, श्रीअगरचन्द नाहटाके सम्पादनके साथ, हिन्दी-अनुशीलन, भारतीय
हिन्दी परिषद् प्रयाग, वर्ष १०, अंक १, जनवरी-मार्च १६५७ ई० में, पृष्ठ ५५-५६
पर प्रकाशित हुआ है। २. जैनगुर्जर कविओ, प्रथम भाग, बम्बई, १९२६ ई०, पृ० २५-२६ । ३. जैनगुर्जर कविओ, तीजो भाग, पृ० ४२८-४२६ । ४. स्थूलिभद्र बारे मासड़ा, ए जे भणै धरि आणंद कि । तिहा धरि अचल वधामणुं, ऐ बोले सूरि हीराणंद कि । स्थूलिभद्र बारहमासा, स्वाँ पद्य, जैनगुर्जर कविओ, तीजो भाग, पृ० २६ ।