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________________ जैन भक्त कवि : जीवन और साहित्य ५३ चैत्यपरिपाटी' में पाटण, रायपुर, शत्रु जयगिरि, गिरिनार, पालीताना और जूनागढ़ आदि अनेक तीर्थोका आंखों देखा वर्णन है । इसमें २१ पद्य हैं, जो सोरठा और वस्तु नामके छन्दोंमे लिखे गये है । इस कृति में अनेक स्थल उत्तम काव्यके निदर्शन है । ‘नगरकोट तीर्थ चैत्य परिपाटी" मे नगरकोटके तीर्थों, मन्दिरों और प्रतिमाओंITI आलंकारिक वर्णन है । भाषापर गुजरातीका प्रभाव है । अतः स्पष्ट है कि उपाध्यायजी गुजरात के ही रहनेवाले होगे । १५वीं शताब्दी के कवियोंमे दृश्यको चित्रित करनेकी ऐसी सामर्थ्य बहुत कममे देखी जाती है । उदाहरणके लिए, "नंद वणिहि नंदउ सुचिरु चरम जिणासरचंद | जगु चकोरू जसु दंसणिहिं पामइ परमानंद ॥ पासि पसंसउं कोटिलए गामिहि महि अभिरामि । महमन कोइलि जिम रमउ तसु गुण अंबारामि ॥ हेमकुंभासिरि जिण भवणि ए सवि शुणिया देव । देवलिय कोठी भयरि करउं वीरजिण सेव ॥" ૪ 'जिनकुशलसूरिचतुष्पदी' का निर्माण मलिकहलपुरमे हुआ था । यह एक सरस काव्य है । इसमे सूरि जिनकुशलकी महिमाका वर्णन किया गया है । 'वयरस्वामी गुरुरास' भी गुरुभक्तिका ही निदर्शन है । सभी स्तुति स्तोत्र उत्तम है। 'चतुविशति जिन स्तुति' मे २४ जिनेन्द्र का स्तवन है । भगवान् ऋषभदेवके दर्शनोंसे उत्पन्न होनेवाला आनन्द अनिर्वचनीय है, " सुविहाणउ जइ आज भई, दीठउ रिसह जिणेस, नयण कमल जिम उल्लसइ, ऊगिउ भलइ दिनेस | रोम विहि तणु ऊधसई, हियडई परमानंद, नयण अमिय रस झलिणऊ, दीठउ आदि जिणंद ॥" १. 'चैत्यपरिपाटी' की हस्तलिखित प्रति पाटण भण्डारमें, मुनि पुण्यविजयजीके संग्रह में, सत्क प्रतिपत्र नं ० २- १० पर मौजूद है 1 २. इसकी हस्तलिखित प्रति भी उपर्युक्त भण्डारमें है । ३. नगरकोट, महातीर्थ चैत्य परिपाटी, पद्य ११-१३ । ४. दादा श्री जिनकुशल सूरि, नाहटा सम्पादित, परिशिष्ट ग, पृ० ८२ । ५. जैन गुर्जर कविप्रो, तीजो भाग, पृ०१४७६ |
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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