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हिन्दी जैन भक्ति-काव्य और कवि ७. उपाध्याय जयसागर ( वि० सं० १४७४-१४९५ ) ___ मध्यकालमे जयसागर नामके तीन कवि हुए है । तीनों ही जैन थे और तीनों ही हिन्दी के समर्थ कवि माने जाते है। उनमे प्रथम को उपाध्याय जयसागर कहते है। उन्होंने जिनराजसूरिके पास दीक्षा ली थी, जो जिनोदयसूरिके पट्टधर थे। श्री जिनवर्धनसूरि उनके विद्यागुरु थे। श्री जिनभद्रसूरिने उनको पाल्हणपुरमे 'उपाध्याय' पदसे सुशोभित किया था । ___ उपाध्याय जयसागर संस्कृत और प्राकृतके गण्यमान्य विद्वान् थे। उनकी अनेक रचनाएं उपलब्ध है, जिनमें 'सन्देह दोहावलीपर लघुवृत्ति', 'उवसग्गहरस्तोत्रवृत्ति', विज्ञप्ति त्रिवेणी', 'पर्वरत्नावलीकथा' और 'पृथ्वीचन्द्रचरित्र' बहुत प्रसिद्ध है।
मन्त्रविद्यामें भी ये पारंगत थे। सेरीषिकाभिधान गाँवमें, श्री पार्श्वनाथजिन मन्दिरमें पद्मावतीसहित धरणेन्द्रने उन्हे दर्शन दिये थे । मेदपाट नामके देशमें, नागदह नामके शुभस्थानपर, नवखंडपार्श्वचैत्यमे शारदा उनपर प्रसन्न हुई थी।
जयसागरके प्राचीन हिन्दीमे लिखे हुए अनेक मुक्तक काव्य प्राप्त हुए हैं, जिनमे "जिनकुशलसूरिचतुष्पदि'-(वि० सं० १४८१ ), 'वयरस्वामी गुरुरास'( १४८६ ), 'गौतमरास', 'नेमिनाथ विवाहलो'-( १४९८ ), 'चैत्यपरिपाटी'(१४८७ ), 'नगरकोट महातीर्थ चैत्य परिपाटी', 'सतगुरुभक्ति', 'आध्यात्मिक विवाह' तीर्थ और चैत्यभक्तिसे सम्बन्धित है । इनके अतिरिक्त उन्होने 'चतुर्विंशति जिनस्तुति', 'अष्टापद तीर्थबावनी', 'अजितस्तोत्र', 'स्तम्भनपार्श्वनाथस्तवन', और 'विहरमान जिनस्तवन' आदि स्तुति-स्तवनोंका भी निर्माण किया था।
१. जैनस्तोत्र सन्दोह, द्वितीय भाग, प्रस्तावना, पृ० ६६ । २. सेरीषिकामिधाने ग्रामे श्रीपार्श्वनाथजिनभवने ।
श्रीशेषः प्रत्यक्षो येषां पद्मावतीसहितः ॥ श्री 'मेदपाट' देशे 'नागद्रह' नामके शुभनिवेशे । नवखण्डपार्श्वचैत्ये सन्तुष्टा शारदा येषाम् ॥ 'श्रीजयसागरउपाध्यायप्रशस्तिः', श्री अगरचन्द नाहटा, ऐतिहासिक जैन काव्यसंग्रह, कलकत्ता, १९६४ वि० सं०, पृ० ४००।