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जैन भक्त कवि : जीवन और साहित्य 'नवतत्त्वबालावबोध' और 'पष्टिशतकवालावबोध ।' 'आराधनाराम' गुजरातीहिन्दीका काव्य है । 'मिश्रबन्धु विनोद' मे इसका उल्लेख हुआ है। निशिनाथनवरसफागु' संस्कृत, प्राकृत और गुजराती मिश्रित हिन्दीमे लिखा गया है। आराधनारास
इसकी रचना वि० सं० १४५० मे हुई थी। इसी वर्ष उन्हे वाचक पद मिला था। इस समय उनकी उम्र २० वर्षको थी, और वे अनेक विद्याओमे निपुण हो चुके थे। 'आराधनारास' एक प्रौढ़ कृति है। नेमिनाथनवरसफागु
यह एक छोटा काव्य है। यह भगवान् नेमिनाथकी भक्तिसे सम्बन्धित है । जिन नेमि जिनेन्द्रके गीतोको शारदा भी गाती है, भला कवि उनकी भक्तिमे तल्लीन क्यो न होगा,
"समर विसारद सकल विसारद सारद या परदेवी रे ।
गाईसु नेमि जिणिंद निरंजन रंजन जगह नमेवी रे ॥" आठ प्रतिहारोको महिमाको धारण करनेवाले भगवान् नेमीश्वरको पुरन्दर भी भक्ति करते है। उन्ही जिनवरके पास सती राजीमतीने उल्लासपूर्वक, संयम धारण किया था, और फलतः उसे मोक्ष मिला था,
"प्रथम अशोक विशाल पुल पगर सुकुमाल, नाद मनोहरुए चंचल चामरु ए, हेमसिंहासणकंत भामंडल झलकंत, दुंदुभि अंबरिए त्रिणि छत्र उपरीए । ईम प्रतिहारज पाठ, कसर जितो नगुपाठ, रचई पुरंदरुए भूरि भगति धरुए, पालीय जिनवर पासि, संयम मन उल्लासि, सिवपुरि पुहूती ए राजमती ए सती ए॥३३-३४॥"
१. मोहनलाल दुलीचन्द देसाई, जैन गुर्जर कवित्री, प्रथम भाग, पृष्ठ ३२, पादटिप्पणी । २. मिश्रवन्धु, मिश्रबन्धु विनोद, प्रथम भाग, पृष्ठ २१७ । ३. मोदनलाल दुलीचद देसाई, जैन गुर्जर कवित्री, तीजो भाग, बम्बई, १६४४ ई०,
पृष्ठ ४३८ पर प्रकाशित।