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हिन्दी जैन भक्ति-काव्य और कवि
६. सोमसुन्दरसूरि (वि० सं० १४५० - १४९९ )
सोमसुन्दरसूरि के पिताका नाम श्रेष्ठि सज्जन और माताका नाम माल्हण देवी था । उनका जन्म प्रल्हादनपुर में वि० सं० १४३० मे हुआ था । माँने सोम (चन्द्र) का स्वप्न देखा था, अतः उनका नाम सोम रखा गया ।
केवल सात वर्षकी उम्रमे, अपनी बहन के साथ, 'सोम'ने जयानन्द सूरि के पास दीक्षा ली। उनका नाम सोमसुन्दर रखा गया । वि० सं० १४५० में वे सम्पूर्ण जैन वाङ्मयमे पारंगत हो गये । उस समय उन्हें वाचक पद प्रदान किया गया । वि० सं० १४५७ मे, पाटणमें उन्हें श्री देवसुन्दरसूरिने आचार्य पदपर प्रतिष्ठित किया। ये तपागच्छके ५० ५० वें पट्टधर थे 1
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सोमसुन्दर प्रकाण्ड पण्डित तो थे ही, भव्य और उदार भी थे । उनके अनेकानेक शिष्य थे, जिनमे मुनिसुन्दर, जयचन्द्र, भुवनसुन्दर, जिनसुन्दर और जिनकीत्ति मुख्य थे श्री मन्दिरत्नगणि आदि अनेक विद्वानोने उनका श्रद्धापूर्वक स्मरण किया है। श्री सोमसुन्दरमूरिने संघसहित, शत्रु जय, गिरिनार, सोपारक और तारंगाजी आदि अनेक तीर्थक्षेत्रोंकी यात्राएं की थीं। 'प्रतिष्ठा' के क्षेत्र में वे अद्वितीय । उनके द्वारा सम्पन्न करवायी गयी प्रतिष्ठाएँ बहुत अधिक है ।
मुख्य रूपसे वे संस्कृत और प्राकृतके विद्वान् थे । उनको रची हुई कृतियाँ इस प्रकार है : 'चैत्यवन्दनभाष्यावचूरि', 'कल्पान्तर्वाच्य', 'चतुत्रिशति जिनभवोत्कीर्तनस्तवनम्', 'युगादिजिनस्तवनम्', 'युष्मच्छन्दन वस्तवी', 'अस्मच्छन्दनवस्तवी', ' त्रयचूर्णि', 'कल्याणकस्तवः', 'यतिजीतकल्प रत्नकोष', 'उपदेश मालाबालावबोध', 'योगशास्त्रबालावबोध', 'षडावश्यक बालावबोध', 'आराधनापताका बालावबोध',
'भाष्य
१. “प्रल्हादनपुरे सज्जनभेष्ठिनो माल्हणदेव्याः कुक्षौ विक्रम संवत् १४३० वर्षेऽस्य जन्म, सोमवावलोकनात् 'सोम' इति प्रादायि नाम ।"
जैनस्तोत्र सन्दोह, मुनि चतुरविजय सम्पादिन, प्रथम भाग, प्रस्तावना, पृष्ठ ७४, अहमदाबाद १६३२ ई० ।
२. जैनस्तोत्र सन्दोह, द्वितीय भाग, मुनि चतुरविजय सम्पादित, अहमदाबाद, १९३६ ई०, प्रस्तावना (गुजराती), पृष्ठ ८४-८५ |
३. श्री रत्नशेखरसरि, आचार प्रदीप प्रशस्ति, श्लोक ७-११, जैनस्तोत्र सन्दोह, प्रथम भाग, प्रस्तावना, पृष्ठ ७५
४. जैनस्तोत्र सन्द्रोह, प्रथम भाग, प्रस्तावना, पृष्ठ ७५–७८ ।
५. जनस्तोत्र सन्दोह, द्वितीय भाग, प्रस्तावना, पृष्ठ ८५ ।