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हिन्दी जैन भक्ति-काव्य और कवि विद्धणूके पिताका नाम 'ठक्कर माल्हे' था।' राजगृहके पार्श्वनाथके मन्दिरमे वि० सं० १४१२ का लिखा हुआ एक शिलालेख है, उसपर ३८ श्लोकोंको एक प्रशस्ति अंकित है । उसके एक श्लोकसे स्पष्ट है कि उस प्रशस्तिके कर्ता ठक्कर माल्हेके पुत्र, वैज्ञानिक, सुश्रावक श्री वीधा नामके कोई व्यक्ति थे। विद्धणूका बचपनका नाम वीधा होना स्वाभाविक भी है। विद्धणूकी रची हुई 'ज्ञानपंचमी चउपई' नामकी रचना उपलब्ध है। ज्ञानपंचमी चउपई
इसकी रचना, मगधर्म विहार करते समय, कवि विद्धणूने वि० सं० १४२३, भाद्रपद शुक्ला एकादशी, गुरुवारके दिन की थी। इसमे श्रुतपंचमीके दिन व्रत रखनेका माहात्म्य और जिन-शासनकी भक्तिका उल्लेख है। इसकी भाषा प्राचीन हिन्दी है, जिसमे गुजरातीका भी मिश्रण है। पं० नाथूरामजी प्रेमीने उसको गुजरातीकी अपेक्षा हिन्दीकी ओर अधिक झुका हुआ माना है। इसमें ५४८
पद्य है।
___ जिन-शासनके प्रति श्रद्धा प्रदर्शित करते हुए कविने लिखा है कि भगवान् जिनेन्द्रका शासन असीम है, उसका पार प्राप्त नहीं किया जा सकता। जो कोई उसको अहर्निशि पढ़ता, गुनता और पूजता है, उसे श्रुतपंचमीके व्रतका फल मिल जाता है।
जिणवर सासणि आछइ सारु, जासु न लन्मइ अंत अपारु । पढ़हु गुणहु पूजहु निसुनेहु, सियपंचमिफलु कहियह एहु ॥
१. ठक्कर माहले पुतु विद्धणु पभणइ सुद्ध मए ।
वहीं, पद्य ५४६ । २. उत्कीर्णा य सुवर्णा ठक्कुर माल्हांगजेन पुण्यार्थे ।
वैज्ञानिक सुश्रावक वोधाभिधानेन ॥३८॥
वही, पृ० ४१६ । ३. हरषिहि लागउ चीतु चउदहसई तेवीसमई ए,
सिय भादवइ इग्यासि गुरु वासरु बहु ऊपनउ, नयर विहार मका पंचमि पुलु इम्ब गाइयउ ॥
वही, पद्य ५४६। ४. हिन्दी जैन साहित्यका इतिहास, पृष्ठ ३३ ।