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________________ जैन भक्त कवि : जीवन और साहित्य ४७ सामिय ए तणउ वषाणु जिम जिम गाजइ मह जिम, तिम तिम ए मवियण चित्त नाचइ फरफर मोर जिम ॥१५॥" आराध्यके गुणोंपर रीझकर ही भक्त, भक्त बना है। वह उन गुणोके गीत गाता ही रहता है । श्रीमरुनन्दनने भी सीमन्धर स्वामीकी प्रशंसा करते हुए लिखा है, उन जिनेन्द्र भगवान्की जय हो, जिनके वचनोमे इतना अमृत भरा है कि उसके समक्ष चन्द्रका अमृत-कुण्ड भी तुच्छ-सा प्रतिभासित होता है। भगवान्के नेत्र कोमल और विशाल कमलको भांति है। देव-दुन्दुभियां भगवान्की महिमाको सदैव उद्घोषित करती है। भगवान् अनन्त गुणोंके प्रतीक है, और उनका कृपाकटाक्ष पल-भरमे ही भक्तको संसार-समुद्रसे पार कर देता है । भक्तको पूरा विश्वास है कि ऐसे भगवान्को प्रणाम करनेसे मन निरालम्ब होकर भ्रमित नहीं होगा। उसने भगवान्से कृपारूपी आलम्बनकी याचना की है, "जय जिणवर ! ससहरहारिवयण ! ____ जय कोमलकमल विसाल नयण !। जय सरस अमियरससरिसवयण ! __ जय महिममहियह देवरयण ! ॥ विलसंत अणंत गुणाण ठाण ! संवच्छरमिच्छियदिन्नदाण!। भवसिंधुतरणतारणसमत्थु ! पडियह आलंबणु देहु हत्थु ॥१८-२०॥" ५. विद्धणू (वि० सं० १४१५) श्री जिनोदयसूरि विद्धणूके भी गुरु थे। सूरिजीका समय वि० सं० १४१५ से १४३२ तक माना जाता है, अतः विद्धणूका भी वही समय है। विद्धणूने अपने गुरुके लिए लिखा है कि वे तारागणोंमें चन्द्रके समान और जलनिधिमे गिरिप्रवरके समान थे। १. नंदउ विह संधु नंदउ सिरि जिणउदय गुरो, जिम्ब तारायण चंदु जिम्ब जलनिधिगुरु गिरिपवरो। श्री विद्धरण , शानपंचमीचउपई, पद्य ५४७, जैन गुर्जर कविप्रो, तीजो भाग,पृ० ४१६ ।
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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