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________________ ४० हिन्दी जैन भक्ति-काव्य और कवि इसका निर्माण वि० सं० १४१२ मे, खम्भातमे हुआ था। प्राचीन हिन्दीके ललित काव्योंमे 'गौतमरासा'का प्रमुख स्थान है। सीमन्धरस्वामीस्तवन ___इस स्तवनके अनुसार सोमन्धर स्वामी, पूर्वविदेहके विहरमाण बीस तीर्थंकरोंमें एक हैं। इनका जन्म पुण्डरीकिनी नामकी नगरीमे, भरतक्षेत्रको विगत चतुर्विशतिकाके १७वें तीर्थंकर कुन्थुनाथ और १८वें तीर्थंकर अरहनाथके मध्यकालमे हुआ था। उनका शासन अभी चल रहा है। वे भरतक्षेत्रको आगामी चतुर्विशतिकाके ७वें तीर्थंकर उदयके समयमे मोक्ष प्राप्त करेंगे। ___ स्तवनमें भक्ति-भाव पूर्णरूपसे विद्यमान है। कविने लिखा है कि मेरुगिरिके उत्तुंग शिखर, गगनके टिमटिमाते तारागण और समुद्रकी तरंग-मालिका, सीमन्धर स्वामीके गुणोंका स्तवन करते ही रहते हैं। भगवान्का स्तवन, अशुभ कर्मोसे उत्पन्न हुए मल-पटलको गलानेमें पूर्णरूपसे समर्थ है। जिननाथका दर्शन करनेसे जन्म सफल हो जाता है, ध्यान लगानेसे संसिद्धि मिलती है, "मेरुगिरि-सिहरि धय-बंधणं जो कुणइ, गयणि तारा गणइ, वेलुआ-कण मिणइ। चरम-सायर-जले लहरि-माला मुणइ, सोवि नहु, सामि, तुह सन्वहा गुणथुणइ ॥ तहवि, जिण-नाह, निय जम्म सफली-कए, विमल-सुह - झाण - संभाण - संसिदए।" १. वही, पृ० ६०; हिन्दी जैन-साहित्यका इतिहास, पृ० ३२; जैन गुर्जर कविनो, प्रथम भाग, पृ०१५। २. यह स्तवन 'Ancient Jaina Hymns' में पृ० १२०-१२४ पर प्रकाशित हो चुका है। भरह-खित्तंमि सिरि-कुंथ-अर-अंतरे जम्म पुंडरिंगणी, विजय पुक्खलवरे । भाविए उदय जिणि सत्तमे सिव-गए, बहूअ-कालेण सिद्धि गमी सामिए । वही, पद्य १६-१७ । ४. Ancient Jaina Hymns, pp. 89-90.
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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