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जैन भक्त कवि : जीवन और साहित्य गौतमरासा ___ 'गौतमरासा', गौतम स्वामीको भक्तिमे लिखा गया है। गौतम भगवान् महावीरके प्रमुख गणधर थे। उन्हे भी मोक्ष प्राप्त हुआ था। जैन परम्परामें उनकी पूजा और स्तुतिका बहुत प्रचलन रहा है। संस्कृत और प्राकृतका विपुल साहित्य उनकी भक्तिमे रचा गया है। 'गौतमरासा' प्राचीन हिन्दीका ग्रन्थ है । इसके अनुसार गौतम, मगध देशमें, गुब्बर नामके गांवके रहनेवाले थे। उनके पिताका नाम वसुभूति था, जो विविध गुणोसे युक्त थे। उनकी माताका नाम पृथ्वी था। ___गौतम स्वामीका पूरा नाम इन्द्रभूति गौतम था। वे समूची पृथ्वीमें प्रसिद्ध थे। उन्हें चौदह विद्याएं उपलब्ध थीं। वे विनय, विवेक, विचार और अनेक मनोहर गुणोसे युक्त थे। उनका शरीर सात हाथ प्रमाण था। उनका रूप रम्भाकी भांति था। गौतमके नेत्र, वचन, हाथ और चरणोंकी शोभासे पराजित होकर ही कमल जलमे पैठ गये थे। उन्होंने अपने तेजसे हराकर तारागण, चन्द्र और सूर्यको आकाशमे भ्रमाया था। उन्होने अपने रूपसे कामदेवको अनंग करके निकाल दिया था। वे मेरुके समान धीर और समुद्रको भांति गम्भीर थे। उनका चरित्र उत्तम था।
श्वेताम्बर जैन सम्प्रदायमें, 'गौतमरासा' की बहुत प्रसिद्धि है। श्री मोहनलाल दुलीचन्द देसाईने उसको १८ प्रतियोंका विवरण दिया है। इससे उसकी लोकप्रियता प्रमाणित है। डॉ० क्राउजेने उसकी प्रशंसा करते हुए लिखा है, "उसमें भक्तिका तीव्रतम भाव, शैलीकी निराली शान और प्रवाहकी मधुर गति सन्नि. हित है।
१. जंबुदीवि सिरिभरहखित्ति खोणीतलमंडणु,
मगधदेस सेणिय नरेस रिउ-दलबल खंडणु । घणवर गुन्वर नाम गामु जहिं गुणगणसज्जा, वप्पु वसे वसुभूइ तत्थ जसु पुहवी भज्जा ।।
गौतमरासा, पद्य २, हिन्दी जैन-साहित्यका इतिहास, पृ० ३२ । २. वही, पद्य ३, ४। ३. जैनगुर्जर कविओ, तीजो भाग, पृ० ४१६-४१७ । ४. Ancient Jaina Hymns, pp. 91.