________________
हिन्दी जैन भक्ति-काव्य और कवि विनयप्रभको उपाध्याय पदपर प्रतिष्ठित किया था।'
'गौतमरासा'को प्राचीन प्रतियोमे, उसके कर्ताका नाम "विनयपट उवझाय' दिया हुआ है। इसका संस्कृत रूप 'विनयप्रभ उपाध्याय' ही है। मिश्रबन्धुओने भी यही नाम स्वीकार किया है। पं० नाथूरामजी प्रेमीको १५वीं शताब्दीके उत्तरार्धको लिखी हुई एक प्रति पाटणके भण्डारमे मिली थी, उसमे 'गौतमरासा के कर्ताका नाम उदयवन्त दिया हुआ है। श्री मोहनलाल दुलीचन्द देसाईने भी विनयप्रभका दूसरा नाम उदयवन्त माना है। अनुमानतः विनयप्रभ साधु जीवनका और उदयवन्त गृहस्थजीवनका नाम होगा।
विनयप्रभकी कृतियोमें 'गौतमरासा' के अतिरिक्त ५ स्तुतियाँ और है, जिनमें विविध तीर्थंकरोंका गुणकीर्तन हुआ है। प्रत्येकमे १९-२९ के लगभग पद्य है। डॉ० शारलण्ट क्राउजेने 'सीमन्धर स्वामि स्तवन'को भी, भाषासाम्यके आधारपर उन्हींकी कृति स्वीकार किया है। इस स्तवनके २०वें पद्यमें 'कम्मकरु विणयपर जोडि कर वीनQ'से सिद्ध है कि 'विणयपरु' ही इसके कर्ता थे। "विणयपरु', 'विनयपहु' अथवा 'विनयपह'का बिगड़ा हुआ रूप है । मिश्रबन्धु-विनोदमे 'हंसवच्छरास' और 'शीलरास'को भी इन्हींकी रचना बतलाया गया है।
१. "तथा श्री गुरुभि (श्री जिनकुशलसूरिभिः) विनयप्रभादिशिष्येभ्य
उपाध्यायपदं दत्तं येन विनयप्रभोपाध्यायेन निधनीभूतस्य निजभ्रातुः सम्पत्तिसिद्ध्यर्थ मन्त्रगभितगौतमरासो विहितः तद्गुणनेन स्वभ्राता पुनर्धनवान् जातः इत्यादि।" मुर्शिदाबादके नेमिनाथके मन्दिरके शानभण्डारमें प्राचीन पट्टावली, जैनगुर्जर कविप्रो,
प्रथम भाग, पृ० १६, पादटिप्पणी । २. देवह धुरि अरिहंत नमीनइ, विनयपह उवझाय थुणीजइ । ___ गौतमरासा, अन्त, पद्य ४८, जैनगुर्जर कविप्रो, प्रथम भाग, पृ० १६ । ३. मिश्रबन्धु, मिश्रबन्धु विनोद, प्रथम भाग, पृ० २१२, लखनऊ, वि० सं० १९८३ । ४. पं० नाथूराम प्रेमी, हिन्दी जैन-साहित्यका इतिहास, पृ० ३२, जनवरी १९१७ । ५. जैनगुर्जर कविओ, प्रथम भाग, पृ० १५ । ६. Ancient Jaina. Hymns, pp. 90-91 ७. वही, the texts, pp. 124. ८. मिश्रबन्धु विनोद, प्रथम भाग, पृ० २१२ ।