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________________ जैन भक्त कवि : जीवन और साहित्य पाठान्तर भेदसे एरच्छके नाम ऐरछ, एरिछि, एलच, एयरच्छ एवं एरस भी मिलते हैं। मूल प्रतिमे एरच्छ दिया हुआ है, जो ठीक प्रतीत होता है । डॉ. वासुदेवशरण अग्रवालने एरच्छ नगरको उत्तर प्रदेशमे और श्री अगरचन्द नाहटाने मध्यप्रदेशमे माना है। किन्तु 'एरकच्छ दसण्णेसु' के अनुसार एरच्छ, दशार्ण-बुन्देलखण्डमे होना चाहिए और वहां इस नामका एक कस्बा आज भी है। उसमे मौर्यकाल तकके अवशेष मिलते है।' वहाँ अग्रवाल रहते थे। सधारका 'प्रद्युम्नचरित्र' एक महत्त्वपूर्ण कृति है । प्रद्युम्नचरित्र इसमे श्रीकृष्णके पुत्र प्रद्युम्नका चरित्र वर्णित है। प्रद्युम्न भगवान् जिनेन्द्रका परम भक्त था । जैन परम्परामे इसे कामदेवका अवतार माना गया है। 'प्रद्युम्नचरित्र'का रचना-संवत् विवादग्रस्त है। जयपुर, कामा, दिल्ली और बाराबंकीकी प्रतियोमे वि० सं० १४११ दिया है । सिन्धिया ओरियण्टल इन्स्टीट्यूट, उज्जैनकी प्रतिमे १५११, और रीवांके दि० जैन मन्दिरकी प्रतिमे १३११ वि० सं० दिया हुआ है। सभीमें स्वाति नक्षत्र, शनिवार अंकित है। किसीमे भादवा सुदी ९, किसीमे भादवा पंचमी, किसीमे भादवा बदी ५, और किसीमे भादवा सुदी ५ लिखा है। पुरानी यन्त्रियोंके आधारपर, इन तिथियोंमे स्वाति नक्षत्र, शनिवारको नहीं बैठता। फिर भी अधिक प्रतियोंमे वि० सं० १४११ ही उपलब्ध होता है, अतः वही मानना उचित लगता है। 'प्रद्युम्नचरित्र' में लगभग ७०० पद्य हैं । इसे 'परदवणु चउपई' भी कहते हैं । यह एक महाकाव्य है। कथानकमे सम्बन्ध-निर्वाह पूर्ण रूपसे हुआ है। प्रारम्भमे हो कविने भक्तिपूर्वक शारदा, पद्मावती, अम्बिका, ज्वालामुखी, क्षेत्रपाल और चौबीस तीर्थंकरोंको नमस्कार किया है। ___ मानवको मूल प्रवृत्तियोंको अंकित करनेमे, कवि निपुण प्रतीत होता है। रुक्मिणी प्रद्युम्नकी मां है। बाहर गये हुए पुत्रके आगमनके हेतु मांका आतुर होना स्वाभाविक ही है। नारदजीने प्रद्युम्नके आनेको बात कही है। पुत्र १. ब्रह्मचारी शीतलप्रसादजी, मध्य-प्रान्तके जैन स्मारक, पृष्ठ ४७ । २. अगरचन्द नाहटा, 'प्रद्युम्नचरित्रका रचना-काल व रचयिता', अनेकान्त, वर्ष १४, किरण ६ (जनवरी १६५७ ), पृष्ठ १७०-१७२ । ३. श्री दि. जैनमन्दिर बधीचन्दजी ( जयपुर ) के ग्रन्थभण्डारकी प्रति, वेष्टन नं. ६१२, पद्य १-३।
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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