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________________ ३४ हिन्दी जैन भक्ति-काव्य और कवि राजुलकी शोभा, 'राधासुधानिधि' में वर्णित राधाको शोभासे बहुत कुछ मिलती-जुलती है। दोनों ही उपास्य बुद्धिसे चालित है ।' २. सधारु ( वि० सं० १४११) 'सो सधार पणमइ सरसुति' के अनुसार कविका नाम 'सधार' होना चाहिए, किन्तु अधिकांश स्थलोंपर 'सधार' उपलब्ध होता है; अतः यही ठीक लगता है । सधार अग्रवाल जातिमे उत्पन्न हुए थे। उनके पिताका नाम साह महाराज और माताका नाम सुधनु था, जो गुणवइ (गुणवती) थी। वे एरच्छ नगरमे रहते थे। नरतिय कज्जलरेह नयणि मुंह कमलि तंबोलो। नागोदर कंठलउ कंठि अनुहार विरोलो ॥ मरगद जादर कंचुयउ फुड फुल्लह माला। करे कंकण मणि-वलउ चूड खलकावइ बाला ।। रुणुझुणु रुणुझुणु रुणुणएँ कडि घाघरियाली। रिमझिमि रिमझिमि रिमझिमिएँ पयनेउर जुयली ॥ नहि अलत्तउ वलवलउ से अंसुय किमिसि । __ अंखडियाली रायमइ पिउ जो अइ मनरसि ॥ डॉ० हजारीप्रसाद द्विवेदी, हिन्दी साहित्यका आदिकाल, पृ०१३ पटना, १६५२ ई० १. वही, पृ० १२। २. अगरवालकी मेरी जाति, पुर अगरोए मुहि उतपाति । श्री दि० जैनमन्दिर बधीचन्दजी (जयपुर ) के ग्रन्थभण्डारकी प्रति, वेष्टन नं० ६१२,६७५वॉ पद्य। ३. सुधणु जणणि गुणवइ उर धरिउ, सा महाराज घरह अवतरिउ । एरछ नगर वसंते जानि, सुणउ चरित मइ रचिउ पुराण ॥ वही, ६७६वा पद्य, सुधनुज जणणि गुणवइ उर धरिउ, साह महाराज घरहं अवतरिउ । एयरछ नगवर संत नगर वसंते जाणि, सुणिउ चरितु मई रचिउ पुराणु ॥ दि. जैनमन्दिर सेठका कुंचा, दिल्ली, शास्त्रभण्डार, वि० सं० १६६८ की लिखी हुई प्रति, ७०८वॉ पद्य।
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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