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जैन भक्त कवि : जीवन और साहित्य
१. राजशेखरसूरि ( वि० सं० १४०५)
राजशेखरसूरिका जन्म प्रश्नवाहन नामके कुलमे हुआ था। वे श्री तिलकसूरिके शिष्य थे। श्री तिलकसूरि अभयदेवसूरिकी परम्परामें हुए हैं। अभयदेव नामके सात सूरिवर भिन्न-भिन्न गच्छोंमें हो चुके हैं। प्रस्तुत अभयदेव हर्षपुरीय गच्छके सूरि थे, इनका समय बारहवीं शताब्दीका पूर्वार्ध माना जाता है।' श्री राजशेखर भी कोटिकगणकी श्रीमध्यम शाखाके हर्षपुरीयगच्छसे सम्बन्धित थे। उनका विरुद मलधारी था।
श्री राजशेखरसूरिने 'प्रबन्धकोश' की रचना ज्येष्ठ शुक्ला सप्तमी वि० सं० १४०५ में, दिल्लीमें रहकर की थी। 'प्रबन्धकोश' संस्कृत गद्यका महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसके उपरान्त ही उन्होंने श्रीधरकी 'न्यायकन्दली' पर एक पंजिकाकी रचना की। उनके 'विनोदकथासंग्रह' में अनेक रस-पद कथाओंका संकलन है । 'नेमिनाथ फागु' उनको एक प्रसिद्ध हिन्दी कृति है।
१. मुनि, चतुरविजय सम्पादित, जैनस्तोत्र-सन्दोह, प्रथम भाग, प्रस्तावना, पृ० २१,
अहमदाबाद, सन् १९३२ ई० । २. श्रीप्रश्नवाहनकुले कोटिकनामनि गणे जगद्विदिते ।
श्रोमध्यमशाखायां हर्षपुरीयाभिधे गच्छे ॥ मलधारिविरुद विदित श्री अभयोपपद सूरि सन्ताने । श्रोतिलकसूरिशिष्यः सूरिः श्रीराजशेखरो जयति ।।
राजशेखरसूरि, प्रबन्धकोश, पृ० १३१, शान्तिनिकेतन, वि० सं० १६६१ । ३. शरगगनमनुमिताब्दे (१४०५) ज्येष्ठामूलीयधवलसप्तम्याम् ।
निष्पन्नमिदं शास्त्रं श्रोत्रध्येत्रोः सुखं तन्यात् ।। वही, पृ० १३१ । ४. मोहनलाल दुलीचन्द देसाई, जैन गुर्जरकविओ, भाग १, पृष्ठ १३, पादटिप्पणी,
बम्बई, वि० सं० १९८२ ।