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हिन्दी जैन भक्ति-काव्य और कवि
"परमेसर तित्थेसरह पय पंकज पणमेवि, मणिसु रासु रेवंत गिरे, अंबिक देवी सुमरेवी । गामागर-पुर-वण-गहण सरि-सरवरि-सुपएसु,
देवभूमि दिसि पच्छिमह मणहरु सोरठ देसु ॥" विक्रम संवत्को १४वीं शताब्दी में अनेक जैन कवि हुए। उनकी भाषा हिन्दी थो। उनकी कविताओंका मूलस्वर भक्तिपूर्ण था। खरतरगच्छीय जिनपतिसूरिके शिष्य जिनेश्वरसूरिने वि० सं० १३३१ के लगभग अनेक भक्तिपूर्ण स्तुतियोंकी रचना की, जिनमें से एकका नाम है 'बाबरो' ।' उसमे तीस पद्य है । आदिका एक पद्य देखिए,
"भगति करवि बहु रिसह जिण, वीरह चलण नमवि। हउंचालिउ मणि भाव धरि, दुइणि जिणमणि समरेवि ॥"
इन्ही जिनेश्वर सूरिके शिष्य अभयतिलकने वि० सं० १३०७ वैसाख शुक्ला १० को 'महावीररास' लिखा था। उसमे २१ पद्य है। इसे भगवान् महावीरकी स्तुति ही कहना चाहिए। लक्ष्मीतिलकका 'शान्तिनाथदेवरास' और सोममूर्तिका 'जिनेश्वरसूरि संयमश्री विवाहवर्णनरास', भक्तिसे सम्बन्धित प्रसिद्ध काव्य हैं।
अम्बदेवसूरि, नागेन्द्रगच्छके आचार्य पासडसूरिके शिष्य थे। उन्होंने वि० सं० १३७१ के लगभग संघपति 'समरा रास' का निर्माण किया था। ओसवाल शाह समरा संघपतिने वि० सं० १३७१ मे शत्रुजय तीर्थक्षेत्रका उद्धार करवाया था। इस रचनामे उसोका वर्णन है। इसकी भाषामें राजस्थानीके शब्द अधिक है। इससे अम्वदेवका जन्म राजस्थानमें कही हुआ था, ऐसा अनुमान होता है। इस रासकी भाषाका सादृश्य गुजरातीको अपेक्षा हिन्दीसे अधिक है। जब समरा शाहने पट्टनसे संघ निकालकर शत्रुजयकी ओर प्रयाण किया, उस समयका एक पद्य देखिए,
१. श्री अगरचन्द नाहटाके निजी संग्रहमें मौजूद है। २. महावीररास और शान्तिनाथ देवरास, श्री अगरचन्द नाहटाके निजी संग्रहमें
मौजूद हैं। ३. जैन ऐतिहासिक काव्य संग्रहमें छप चुका है। ४. प्राचीन जैन गुर्जरकाव्य संग्रहमें संकलित है।