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________________ हिन्दी के आदिकालमें जैन भक्तिपरक कृतियाँ ५०३ केवली हुए, जिनमे जम्बूस्वामी अन्तिम थे । सुभद्रासतो जिनेन्द्रको भक्त थी । तीनों ही रचनाएँ पुरानी हिन्दीमे लिखी गयी है । यद्यपि कुछ लेखक इन कृतियोंकी भाषाको गुजराती कहते है, किन्तु वह हिन्दी के अधिक निकट है । तीनोंका एक-एक पद्य निम्न प्रकारसे है, "जिण चउ वीसह पय जंबु सामिहिं तणउ चरिय नमेवि गुरु चरण नमेवि । भविउ निसुणेवि ॥" — जम्बू स्वामी चरित्र वाएसरी । रहज्जु केसरी ॥" स्थूलभद्र रास "पणमवि सासणदेवी नई थूलिभद्र गुण गहण, सुणि सुणिव "जं फल होइ गया गिरणारे, जं फलु दीन्हइ सोना मारे ! जं फलु लक्खि नवकारिहि, गुणिहिं तं फल सुभद्राचरितिहिं सुणिहिं ॥" -सुभद्रासती चतुष्पदिका शाहरयण, खरतरगच्छीय जिनपतिसूरिके शिष्य थे । उन्होंने वि० सं० १२७८ मे 'जिन पतिसूरि धवलगीत े का निर्माण किया था । यह कृति गुरु भक्तिका दृष्टान्त है । इसमें बीस पद्य है । रचना सरस है । पहला पद्य देखिए, "वीर जिणेसर नमइ सुरेसर तसपह पणमिय पय कमले । युगवर जिनपति सूरि गुण गाइ सो मन्ति भर हरसि हिम निरमले ॥" विजयसेनसूरि, नागेन्द्रगच्छीय हरिभद्रसूरिके शिष्य और मन्त्रिप्रवर वस्तुपालके धर्माचार्य थे । उन्होंने वि० सं० १२८८ के लगभग 'रेवन्तगिरि रासो की रचना की थी । इसमें ७२ पद्य हैं। इसमें गिरिनारके जैन मन्दिरोंका वर्णन है । इसकी भाषा प्राचीन गुजरातीकी अपेक्षा हिन्दी के अधिक निकट है । प्रारम्भके दो पद्य इस भाँति हैं, १. लायब्रेरी मिसेलेनी, त्रैमासिक पत्रिका, बड़ौदा महाराजकी सेण्ट्रल लायब्रेरीका प्रकाशन, अप्रैल १९१५के अंकमें, श्री सी० डी० दलालका, पाटणके सुप्रसिद्ध जैन पुस्तकालयों की खोज में प्राप्त संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश और प्राचीन गुजरतीके ग्रन्थका विवरण | २. 'ऐतिहासिक जैनकाव्य संग्रह' में प्रकाशित हो चुका है । ३. 'प्राचीन गुर्जरकाव्य संग्रह' में प्रकाशित हुआ है ।
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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